सुभाष चंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई को नई राह दिखाई : शास्त्री
नेता जी की 125वीं जयंती के अवसर पर भाजपा जिला महामंत्री सतपाल शास्त्री ने दातारपुर में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नेता जी के पिता ने अंग्रेजों के दमनचक्र के विरोध में रायबहादुर की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंग्रेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : 23 जनवरी 1897 के दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म कटक के वकील जानकी नाथ व प्रभावती देवी के घर हुआ। नेता जी की 125वीं जयंती के अवसर पर भाजपा जिला महामंत्री सतपाल शास्त्री ने दातारपुर में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नेता जी के पिता ने अंग्रेजों के दमनचक्र के विरोध में रायबहादुर की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंग्रेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। अब सुभाष अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आइसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आइसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा-जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना। दिसंबर 1927 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के बाद 1938 में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने कहा था - मेरी यह कामना है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना है। हमारी लड़ाई केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से नहीं, विश्व साम्राज्यवाद से है। धीरे-धीरे कांग्रेस से सुभाष का मोह भंग होने लगा। 18 मार्च 1939 को सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सुभाष ने आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत चार जुलाई 1943 को सिगापुर में भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन के साथ हुई। पांच जुलाई 1943 को आजाद हिद फौज का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया। 12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हाल में शहीद यतिद्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा। यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत मां का दुलारा सदा के लिए राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया। कार्यक्रम में कैप्टन रविद्र शर्मा, रमेश कुमार, सुभाष सिंह व अन्य उपस्थित थे।