मातृ शक्ति का प्रतीक है शक्ति दुर्गा मंदिर दातारपुर
महाराजा दातार चंद की रियासत और बाबा लाल दयाल की तपोभूमि दातारपुर की धर्मनगरी में शक्ति दुर्गा मंदिर नारी शक्ति का प्रतीक है। अल्पकाल में ही मंदिर की पहचान पूरे क्षेत्र में बनी है। यहां हर रोज भक्त आते हैं और मां के चरणों में शीश नवाते हैं व मुंह मांगी मुरादें प्राप्त कर जीवन सफल बनाते हैं।
सरोज बाला, दातारपुर
महाराजा दातार चंद की रियासत और बाबा लाल दयाल की तपोभूमि दातारपुर की धर्मनगरी में शक्ति दुर्गा मंदिर नारी शक्ति का प्रतीक है। अल्पकाल में ही मंदिर की पहचान पूरे क्षेत्र में बनी है। यहां हर रोज भक्त आते हैं और मां के चरणों में शीश नवाते हैं व मुंह मांगी मुरादें प्राप्त कर जीवन सफल बनाते हैं। 32 साल पुराने मंदिर ने मां के असंख्य लाडलों के मन में अपने प्रति श्रद्धा उत्पन्न की है, वैसे तो सारा साल श्रद्धालु यहां आते हैं, पर चैत्र व आश्विन नवरात्र में विशेष आयोजन होते हैं। अष्टमी व नवमी के दिन यहां कन्या पूजन किया जाता है। अष्टमी को कमाही देवी तक शोभायात्रा होती है और फिर ध्वजारोहण का आयोजन मुख्य आकर्षण रहता है। हर साल तीन दिवसीय धर्म सम्मेलन, प्रभातफेरी, शोभायात्रा, भगवती जागरण व लंगर लगाया जाता है। 19 अक्टूबर को वार्षिक प्रतिष्ठापना दिवस उपलक्ष्य में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। मंदिर दातारपुर के दशहरा मैदान के पास स्थित है। यहां आने के लिए तलवाड़ा 10 किमी, हाजीपुर आठ किमी से सीधी बस सेवा उपलब्ध है।
दो देवाओं ने मां को जीवन समर्पित कर बनवाया है मंदिर
मंदिर की स्थापना यहां रहने वाली और बाल्यकाल से ही मां की लग्न में लिप्त धर्ममूर्ति दो देवाओं ने की। नारी शक्ति की प्रतीक दोनों सुश्री देवा ने जीवन को मोह माया का परित्याग कर जगतजननी पराम्बा भवानी के चरणों में समर्पित किया। इनकी सादगी, तप और आध्यात्मिकता पर पूरे क्षेत्रवासियों को गर्व है। इन्होंने बड़ी परिश्रम से नारी सशक्तिकरण की मिसाल कायम करते हुए मंदिर का निर्माण करवाया व बड़ा सत्संग हाल बनवाया। कई कमरे व लंगर भवन बनवाया। कुलदीप शारदा व हरबंस लाल शर्मा यहां मुख्य सेवादार व आयोजक हैं।
तैयारियां
वैसे तो यहां रोजाना लोग आते हैं, पर नवरात्र में सुश्री देवा सुबह व शाम पुष्प, धूप, दीप से मां का पूजन करती हैं, दुर्गासप्त शती का पाठ करती हैं। आरती होती है प्रसाद बंटता है, कन्या पूजन होता है। श्रद्धालुओं के लिए फलाहार की व्यवस्था रहती है।
विशेषता
11 अक्टूबर 1988 को देवा ने नवनिर्मित मंदिर में प्रवेश किया और 19 अक्टूबर को मां की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की। तब से आज तक दातारपुर, तलवाड़ा, मुकेरियां व अन्य शहरों के लोग शक्तिपीठ के साथ जुड़ते चले आए हैं।