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अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचें: महंत रमेश

जो व्यक्ति परोपकारी होता है उसका जीवन आदर्श माना जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Dec 2019 01:46 AM (IST)Updated: Sun, 01 Dec 2019 01:46 AM (IST)
अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचें: महंत रमेश
अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचें: महंत रमेश

संवाद सहयोगी, दातारपुर : जो व्यक्ति परोपकारी होता है, उसका जीवन आदर्श माना जाता है। परोपकारी इंसान का मन हमेशा शात रहता है। उसे समाज में हमेशा यश और सम्मान मिलता है। बहुत से ऐसे महान पुरुष थे जिन्हें परोपकार की वजह से समाज से यश और सम्मान प्राप्त हुआ।

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बावा लाला दयाल आश्रम दातारपुर में महंत रमेश दास ने कहा यह सब लोक कल्याण की वजह से पूजा करने योग्य बन गए हैं। दूसरों का हित चाहने के लिए महात्मा गांधी ने गोली खाई थी। सुक्रात ने जहर पिया था और ईसा मसीह सूली पर चढ़े थे। उन्होंने कहा किसी भी देश या राष्ट्र की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन माना जाता है। जो दूसरों के लिए आत्म बलिदान देता है तो वह समाज में अमर हो जाता है। जो व्यक्ति अपने इस जीवन में दूसरे लोगों के जीवन को जीने योग्य बनाता है, उसकी उम्र लंबी होती है। महंत ने कहा कि वैसे तो पक्षी भी जी लेते हैं और किसी-न-किसी तरह से अपना पेट भर लेते हैं। लोग उसे ही चाहते हैं जिसके दिल के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहते हैं। समाज में किसी भी परोपकारी का किसी अमीर व्यक्ति से ज्यादा सम्मान किया जाता है। दूसरों के दुखों को सहना एक तप होता है, जिसमें तप कर कोई व्यक्ति सोने की तरह खरा हो जाता है।

महंत रमेश दास ने कहा कि अगर तुम्हारे पास शिक्षा है तो उसे अशिक्षितों में बाटो। ऐसा करने से ही तुम एक मनुष्य कहलाने का अधिकार पा सकते हो। तुम्हारा कर्तव्य सिर्फ यही नहीं है कि खाओ पियो और आराम करो। हमारे जीवन में त्याग और भावना बलिदान करने की भी भावना होनी चाहिए। इस अवसर पर अशोक गुलाटी, तरसेम लाल, सुदर्शन कुमार, सुदेश कुमारी, अनीता, शीला, सरिता, जनक राज, अहिव कुमार, उषा देवी, काता देवी, धर्मपाल, तारा मति, सुरिदर कुमार, भोली देवी, नीलाम, सरिता व मंजू बाला उपस्थित थे। प्रेम और परोपकार एक सिक्के के दो पहलू

महंत ने कहा कि प्रेम और परोपकार व्यक्ति के लिए एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। उन्होंने कहा मानवता का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचे। मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए कि खुद संभल जाए और दूसरों को भी संभाले। जो व्यक्ति दूसरों के दुखों को देखकर दुखी नहीं होता है वह मनुष्य नहीं होता है, वह एक पशु के समान होता है। द सरों के दुखों को देखकर भागे नहीं

महंत ने कहा कि जो गरीबों और असहाय के दुखों को और उनकी आंखों से आसुओं को बहता देखकर जो खुद न रो दिया हो वह मनुष्य नहीं होता है। जो भूखों को अपने पेट पर हाथ फेरता देखकर अपना भोजन उनको न दे दे वह मनुष्य नहीं होता है। अगर तुम्हारे पास धन है तो उससे गरीबों का कल्याण करो। उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे पास शक्ति है तो उससे कमजोरों का उद्धार करो।


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