माता ब्रह्मचारिणी की पूजा देती है अमोघ फल : महंत राजगिरि
संवाद सहयोगी दातारपुर नवरात्र के दूसरे दिन (18 अक्टूबर) मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर
नवरात्र के दूसरे दिन (18 अक्टूबर) मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में धर्म चर्चा करते हुए तपोमूर्ति महंत राज गिरि महाराज ने कहा देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है।
उन्होंने कहा देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोकों को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला है और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं।
महंत जी ने कहा देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें। देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति-भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, अर्पित करें। देवी को लाल फूल काफी पसंद है। घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।