जन्माष्टमी का व्रत करने से घर में होता है लक्ष्मी का वास
दातारपुर स्कंदपुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एक अत्यंत महत्तवपूर्ण व्रत होता है। यदि दिन या रात्रि में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए।
संवाद सहयोगी, दातारपुर: स्कंदपुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एक अत्यंत महत्तवपूर्ण व्रत होता है। यदि दिन या रात्रि में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए। उदासीन आश्रम ढाडे कटवाल में महंत राम दास जी ने कृष्ण जन्माष्टमी पर प्रवचन करते हुए कहा कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो, तो इस व्रत का पालन करना चाहिए। स्कंद पुराण के एक अन्य कथन के अनुसार जो व्यक्ति जन्माष्टमी व्रत को करते हैं, उनके पास लक्ष्मी का वास होता है। विष्णु पुराण के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो, तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से अनेक जन्मों के पापों का क्षय होता है। भृगु संहिता के अनुसार जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि, ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अंत में पारणा करना चाहिए। उन्होंने कहा गीता की अवधारणा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण गीता कहते हैं कि जब-जब धर्म का नाश होता है, तब-तब मैं स्वयं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूं और अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करता हूं। अत:जब असुर एवं राक्षसी प्रवृत्तियों द्वारा पाप का आतंक व्याप्त होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर इन पापों का शमन करते हैं। भगवान विष्णु का इन समस्त अवतारों में से एक महत्त्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण का रहा। भगवान स्वयं जिस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, उस पवित्र तिथि को लोग कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। सभी लोग कृष्ण जन्म मनाएं परंतु सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए, ताकि सभी स्वस्थ रहें।