महाराणा ने स्वीकार नहीं की पराधीनता: कंवर रत्न
भारत के इतिहास के गौरवमयी शूरवीर महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर रविवार को दातारपुर के महाराणा प्रताप भवन में उन्हें नमन करते हुए श्रद्धांजलि भेंट की गई।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : भारत के इतिहास के गौरवमयी शूरवीर महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर रविवार को दातारपुर के महाराणा प्रताप भवन में उन्हें नमन करते हुए श्रद्धांजलि भेंट की गई। कंवर रत्न चंद ने कहा, गोगुंदा, चावंड, कुंभलगढ़, दिवेर जैसे 21 भीषण युद्ध जीतकर मुगलों के कई भ्रम दूर करने वाले महाराणा प्रताप जब तक जीवित रहे, तब तक मुगल का राज स्वीकार नहीं किया और न कभी अपने धर्म व कर्म से विमुख हुए। उन्होंने कहा, दुश्मन के खून से सनी महाराणा की शमशीर ने कभी अपने म्यान में विश्राम नहीं किया। अपने पुरखों की विरासत संपूर्ण मेवाड़ पर राजपूत साम्राज्य कायम करने के लिए क्षत्रिय धर्म बखूबी निभाया। कंवर रत्न ने कहा कि मेवाड़ को मुगल सल्तनत का हिस्सा बनाकर उस पर इस्लामिक परचम लहराने की अकबर की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हुई। लेकिन अफसोसजनक कि हमारे धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करके बेगुनाहों का खून बहाकर धर्मांतरण व कई नगरों का नाम तब्दील करने वाले विदेशी आक्रांताओं को महान पढ़ाया गया है। मगर, तलवार से दुश्मन का हलक सुखाकर भारत की गौरव पताका फहराने वाले, धर्म-संस्कृति, आत्म सम्मान के रक्षक व मातृभूमि का रक्त से अभिषेक करने वाले राष्ट्र नायक महाराणा प्रताप सिंह भारतीय इतिहास की किताबों में महान नहीं कहलाए गए। जिन महान योद्धाओं की शूरवीरता के बिना देश का रक्तरंजित इतिहास फीका पड़ जाए, उनकी महानता की परिभाषा का सही मूल्यांकन होना चाहिए। असीम शौर्य व पराक्रम के प्रतीक महाराणा प्रताप को राष्ट्र उनकी जयंती पर शत-शत नमन करता है। इस अवसर पर केवल सिंह, प्रीतपाल, राजिदर सिंह, राजेश कुमार उपस्थित थे।