अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित बच्चे की मौत, परिजनों ने जताया रोष
शहर के एक निजी अस्पताल में बुधवार सायं निमोनिया से पीड़ित एक बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद परिजनों ने आरोप लगाया की कि डाक्टर ने बच्चे की मौत के बाद उन्हें जानकारी नहीं दी, बल्कि उसे रेफर कर दिया। जब वह दूसरे अस्पताल में पहुंचे तो उसकी मौत के बारे में बताया गया। चक्क साधु निवासी पवन कुमार ने बताया कि उसके छह माह के बेटे सुखमन को बुखार की शिकायत थी। सुबह उसे अस्पताल में दाखिल कराया था। टेस्ट करने के बाद डाक्टर ने बताया की कि बच्चे को निमोनिया है और भर्ती करने के लिए कहा। करीबन तीन घंटे तक बच्चे का टेस्ट और लिया किया। मगर बाद दोपहर तीन बजे के करीब उसके बच्चे को यह कहते हुए रेफर कर दिया गया की कि उसकी हालत काफी नाजुक है। जब दूसरे निजी अस्पताल में लेकर पहुंचे तो वहां पर बताया गया की कि बच्चे की मौत हो चुकी है। उ
संवाद सहयोगी, होशियारपुर
शहर के एक निजी अस्पताल में बुधवार सायं निमोनिया से पीड़ित एक छह माह के बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टर ने बच्चे की मौत के बाद उन्हें जानकारी नहीं दी बल्कि उसे रेफर कर दिया। जब वह दूसरे अस्पताल में पहुंचे, तो उसकी मौत के बारे में बताया गया।
चक्क साधु निवासी पवन कुमार ने बताया कि उसके छह माह के बेटे सुखमन को बुखार की शिकायत थी। सुबह उसे अस्पताल में दाखिल कराया था। टेस्ट करने के बाद डॉक्टर ने बताया कि बच्चे को निमोनिया है और भर्ती करने के लिए कहा। इस दौरान लगभग तीन घंटे तक बच्चे का टेस्ट लिया गया। मगर, बाद दोपहर तीन बजे के करीब उसके बच्चे को यह कहते हुए रेफर कर दिया गया कि उसकी हालत काफी नाजुक है। जब वह दूसरे निजी अस्पताल में बच्चे को लेकर पहुंचे, तो वहां पर बताया गया कि बच्चे की मौत हो चुकी है।
उनका कहना है कि उन्हें पहले वाले डॉक्टर ने धोखे में रखा। वहीं, बच्चे की मौत की खबर सुनकर परिजन भड़के उठे और उसके सगे संबंधी भी मौके पर पहुंचे और डॉक्टर के खिलाफ नारेबाजी की।
दूसरी तरफ, इस बारे में डॉ. जगमोहन ¨सह का कहना है कि बच्चे को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। इस बारे में उसके परिजनों को भी बता दिया गया था। टेस्ट के दौरान मालूम चला कि बच्चे को सीरियस निमोनिया है। उसकी हालत बिगड़ती गई। इस पर उन्होंने उसे रेफर किया था। उनका कहना है कि अस्पताल में बच्चे की मौत नहीं हुई थी। बच्चा अंडर वेट भी था। उसके फेफड़े गल चुके थे। इलाज में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गई है।