राजनीति में हाशिए पर पहुंचीं होशियारपुर की धुरंधर नेत्रियां
देश प्रदेश की राजनीति में धाक जमाने वाली होशियारपुर की नेत्रियां राजनीतिक हाशिए पर पहुंच गई है। किसी जमाने में चुनावी सीजन में जिन नेत्रियों का नाम रण में गूंजता था वह अब गुजरे जमाने की बात सी होती जा रही है।
हजारी लाल, होशियारपुर : देश प्रदेश की राजनीति में धाक जमाने वाली होशियारपुर की नेत्रियां राजनीतिक हाशिए पर पहुंच गई है। किसी जमाने में चुनावी सीजन में जिन नेत्रियों का नाम रण में गूंजता था, वह अब गुजरे जमाने की बात सी होती जा रही है। पंजाब की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री संतोष चौधरी, पूर्व कैबिनेट मंत्री बीबी महिदर कौर जोश, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री सुपिदर कौर चीमा और सीपीएस रह चुकी बीबी सुखजीत कौर साही का इस चुनाव में राजनीतिक बोलबाला नहीं रहा। यूं कहें कि पार्टी हाईकमान ने इन धुरंधर नेत्रियों की सियासत पर कहीं न कहीं ब्रेक लगा दी है तो शायद कुछ गलत नहीं होगा।
पहले बात करते हैं शामचौरासी विधानसभा सीट से संबंध रखने वाली पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री संतोष चौधरी की। चौधरी के ससुर चौधरी संसार चंद राजनीतिक हस्ती थे। कांग्रेस में उनकी तूती बोलती थी। चौधरी परिवार की बहू बनने के बाद संतोष चौधरी ने ससुर की राजनीतिक विरासत संभाली। अपनी काबलियत से वह संसद तक की सीढि़यां चढ़ीं। यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहीं। अन्य तमाम प्रतिष्ठित जिम्मेदारियां संभाल चुकी हैं। मगर, सन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हाईकमान ने संतोष चौधरी की टिकट पर कैंची चलाकर उनके राजनीतिक पर काट दिए। और तो और सन 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने संतोष चौधरी के पति राम लुभाया की भी टिकट काट दी। इसके साथ ही चौधरी परिवार की राजनीति पर फुल स्टाप लग गया।
इसी सीट से तेजतर्रार नेत्री बीबी महिदर कौर जोश की राजनीति में बड़ा उतार चढ़ाव आया है। पिता अजुर्न सिंह जोश की राजनीतिक विरासत संभालने वाली बीबी महिदर कौर जोश का नाम प्रदेश की राजनीति में शुमार था। सन 1997 में वह चुनाव जीतीं और अकाली-भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। उसके बाद फिर वह दो बार विधायक बनीं। मगर, यह विधानसभा चुनाव उनके लिए ठीक नहीं रहा। शिरोमणि अकाली दल बादल का बसपा के साथ गठबंधन होने के बाद यह सीट बसपा के खाते में चली गई। इससे जोश की टिकट पर ग्रहण लग गया। शिरोमणि अकाली दल बादल ने उन्हें पार्टी से निष्कासित भी कर दिया है। हालांकि वह आजाद लड़ने के लिए संकेत दे रही हैं।
विधानसभा सीट दसूहा से पति अमरजीत सिंह साही का राजनीतिक विरासत संभालने वाली बीबी सुखजीत कौर साही के लिए भी यह विधानसभा चुनाव अच्छा नहीं रहा। साही पहले भाजपा में थीं, मगर अकाली दल का भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद साही ने अकाली दल ज्वाइन कर लिया था। साही की यह हसरत थी कि वह अकाली दल की टिकट पर चुनाव लड़कर हुंकार भरेंगी, लेकिन शिरोमणि अकाली दल का बसपा के साथ गठबंधन के कारण यह सीट भी बसपा के खाते में चली गई। इसके साथ ही बीबी साही की चुनाव लड़ने की उम्मीदें क्षीण हो गईं। एक किस्म से बीबी साही इन दिनों राजनीतिक गतिविधियों से किनारा करके बैठ गई हैं। बता दें कि अमरजीत सिंह साही की मौत के बाद हुए चुनाव में बाबी साही दसूहा से विधायक चुनीं गई थीं।
यही नहीं, उड़मुड़ से संबंध रखने वाली सुरजीत कौर कालकाट की कांग्रेस में तूती बोलती थी। सन 2007 के विधानसभा चुनाव में उड़मुड़ से कांग्रेस हाईकमान ने कालकाट की बेटी सुपिदर कौर को टिकट दी थी। इन्हें टिकट मिलने से हाईकमान के फैसले से नाराज होकर संगत सिंह गिलजियां ने आजाद हुंकार भर दी थी। चुनाव बाजी भी गिलजियां ने मारी थी। सुपिदर कौर को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। इसी करारी हार के साथ सुपिदर कौर की राजनीति का अंत हो गया था।