गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है गंगा अवतरण दिवस : जिदा बाबा
हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में स्नान करता है चाहे वह निर्धन हो असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर :
हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में स्नान करता है चाहे वह निर्धन हो, असमर्थ हो, वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है। पुराण में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तदनुसार आज 20 जून में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतरित हुई थी। वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।
दलवाली के दुर्गा माता मन्दिर में आध्यात्मिक विभूति राजिन्द्र सिंह जिंदा बाबा ने आज 20 जून गंगा दशहरा के अवसर पर कहा कि हमारे वेद शास्त्रों के मुताबिक ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा जी का आगमन हुआ था। ज्येष्ठ मास की इस दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है। उन्होंने कहा ग्रंथों में गंगा अवतरण की कथा वर्णित है। आज ही के दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं। मनुष्यों को मुक्ति देने वाली गंगा नदी अतुलनीय हैं।
संपूर्ण विश्व में इसे सबसे पवित्र नदी माना जाता है। राजा भगीरथ ने इसके
लिए वर्षों तक तपस्या की थी। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा धरती पर आई। इससे न केवल सूखा और निर्जीव क्षेत्र उर्वर बन गया, बल्कि चारों ओर हरियाली भी छा गई थी। गंगा दशहरा पर्व मनाने की परंपरा इसी समय से आरंभ हुई थी। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भागीरथी भी है।