दातारपुर में गिद्ध नजर आना सुखद संकेत
मृत जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्ध पंजाब समेत उत्तर भारत में लुप्त हो चुके थे।
सरोज बाला, दातारपुर
मृत जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्ध पंजाब समेत उत्तर भारत में लुप्त हो चुके थे। जबकि 25-30 साल पहले जिला होशियारपुर में ही इनकी तादाद हजारों में थी और कंडी इलाका के कई पुराने पीपल व बरगद के पेड़ इनके आशियाने थे। पक्षी विशेषज्ञ गीतांजलि कंवर ने बताया कि जिप्स टेन्यू इसे स्तशिस प्रजाति के यह पक्षी पूरे उत्तर भारत में मात्र 100 ही बचे हैं। जबकि ग्रिफन वल्चर प्रजाति के 98 प्रतिशत पक्षी घट चुके थे। यानि पूरी तरह से लुप्त थे। हरियाणा के पंचकुला तथा हिमाचल प्रदेश में भी इनको बचाने के प्रयासों के तहत प्रजनन करवाकर इसकी वंशवृद्धि की कोशिश की गई।
दातारपुर के निकट मंड क्षेत्र में एक मृत जानवर का मांस खा रहे गिद्धों के झुंड को कुछ दिन पहले देखकर इस संवाददाता ने तमाम जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास किया तो वन्य प्राणी विभाग के रेज अफसर दलजीत कुमार ने इस सूचना पर खुशी प्रकट करते हुए कहा कि दातारपुर में इन पक्षियों को देखा जाना पर्यावरण के लिए सुखद व शुभ संकेत है। अब इनकी गिनती बढ़ेगी तथा वातावरण शुद्ध होगा। क्योंकि यह पक्षी मरे जानवरों के सिवाए कुछ भी नहीं खाते। इस विषय में वर्ल्ड वाइल्ड फंड फार नेचर की दिल्ली स्थित संस्था की चंडीगढ़ में सीनियर प्रोजेक्ट अधिकारी गीतांजलि कंवर से बात की गई तो, उन्होंने कहा कि गिद्धों के अस्तित्व को खतरा पशुओं की प्राकृतिक मौत न होना है। क्योंकि मरे हुए पशुओं के मास पर निर्भर रहने वाला यह पक्षी और कुछ नहीं खाता और इनकी कम तदाद का कारण रहा पशुओं को दर्द निवारक दवा के प्रयोग। गीतांजलि कंवर ने कहा कि दवा के प्रयोग से वह दुष्प्रभाव से मरे पशु का मांस खाकर गिद्दों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई व यह लुप्त हो गए। इस दवा के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसलिए अब इनकी प्रजनन क्षमता बढ़ने से ही यह बढ़ रहे है। नतीजन दातारपुर में नजर आए है। इनकी कुल संख्या 27 है। फोटो देखने के बाद गीतांजलि ने बताया कि यह दो प्रकार के हैं। एक इजियशियन गिद्ध तथा दूसरे प्रकार के इंडियन गिद्ध हैं।
इस विषय में वन विभाग के कंजरवेटर महावीर सिंह ने बताया कि भारत में पाए जाने वाली नौ गिद्ध प्रजातियां हैं। इनमें वाइट रंप्ड वल्चर, इंजीपशन वल्चर, सीनेरियम वल्चर, ग्रीफन वल्चर, सलेडर बिल्ड, हिमालयन वल्चर, रेड हैडेड वल्चर, इंडियन वल्चर व वेरडेड वल्चर शामिल हैं। वेरडेड वल्चर को छोड़ अन्य सभी प्रजातियां पडोसी प्रांत हिमाचल में पाई जाती हैं। ओर कभी कभी ये पक्षी कंडी इलाका में घूमते हुए आ जाते हैं, तभी ये दातारपुर के पास दिखाई दिए हैं। इनमें से वाइट रंपड वल्चर प्रजाति की संख्या में कमी दर्ज की गई है। विभाग ने वाइट रंप्ड वल्चर के संरक्षण के लिए सर्वे शुरू किया। कांगड़ा में इस प्रजाति के होने के प्रमाण मिले। यहां मिले घोंसलों से विभाग को उम्मीद जगी कि इस प्रजाति के पक्षियों में अब वृद्धि हो सकती है।