गढ़शंकर और माहिलपुर में बढ़ रही है नशा तस्करी
कभी शिक्षा व खेलों के लिए अलग पहचान रखने वाला माहिलपुर व गढ़शंकर आज नशे की दलदल में धंसता जा रहा है। नशे की रोकथाम का दम भरने वाली पुलिस फेल साबित हो रही है।
रामपाल भारद्वाज, गढ़शंकर कभी शिक्षा व खेलों के लिए अलग पहचान रखने वाला माहिलपुर व गढ़शंकर आज नशे की दलदल में धंसता जा रहा है। नशे की रोकथाम का दम भरने वाली पुलिस फेल साबित हो रही है। हालात यह हैं कि माहिलपुर-गढ़शंकर इलाके के कुछ गांवों में धड़ल्ले से नशा बिक रहा है। या यूं कहे कि घर-घर नशे के व्यापारी हैं। यदि विश्व प्रसिद्ध खेल फुटबाल की बात हो तो होशियारपुर का कस्बा माहिलपुर फुटबाल की नर्सरी माना जाता है। लेकिन, अफसोस यही इलाका नशे में डूब रहा है। बाड़िया कलां, चब्बेवाल, कोटफतूही, रामपुर, जड़ोली, पनाम व सुमंदडा आर्थिक रूप से संपन्न इलाके हैं। यहां के लोग विदेश में जाकर बसे हैं और वह रिश्तेदारों की आर्थिक मदद किसी न किसी रूप में करते हैं। इसी संपन्नता के कारण लोग शौक में पहले तो ड्रग्स लेते हैं और बाद में वह नशे की दलदल में धंसते जाते हैं। पहले भुक्की और अफीम का इस्तेमाल लोग नशे के लिए करते थे, पर धीरे-धीरे विदेशी रिश्तेदारों व बड़े शहरों में रहने वाले दोस्तों को देखकर हेरोइन, स्मैक की लत लगवा बैठे हैं। युवा नशे के आदी इस कदर तक हो चुके हैं कि दर्द निवारक दवाएं, इंजेक्शन, खांसी की दवा, हाथियों को बेहोश करने वाली दवा, जोड़ों के दर्द को दूर करने वाली दवा और पशुओं को पड़ने वाले खटमलों को मारने वाली दवा के इंजेक्शन का नशे के लिए प्रयोग करने लगे हैं। युवा ड्रग्स को संस्कृति और रुतबे का हिस्सा मानने लगे हैं।
पहले शौक, बाद में शोक
विदेश में रह रहे रिश्तेदारों की मदद से आर्थिक संपन्न लोग शौक-शौक में नशा करना तो शुरू कर देते हैं। लेकिन बाद में उससे तौबा करना मुश्किल हो जाता है। हालात यह हो जाते हैं कि आखिरकार नशा मौत के साथ ही खत्म होता है। नशे के इंजेक्शन लगाकर मरने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। इसके बावजूद पुलिस मामले की जांच करने के बजाय मामला हार्ट अटैक का बताकर पल्ला झाड़ लेती है, जबकि मौत ओवरडोज के कारण हुई होती है। माहिलपुर के लंगेरी रोड पर नशे के लिए बदनाम जगहों से दो महीने में दो युवकों का शव बरामद हुआ था। उस दौरान ओवरडोज के साफ सुबूत मिले थे, पर घरवालों को बेइज्जती का भय दिखाकर मामले को हार्ट अटैक बता दफन कर दिया गया। ऐसा ही हाल गढ़शंकर थाने से दो किलोमीटर दूर पड़ते गांव देनोवाल खुर्द का है जहां पिछले छह माह में चार लोगों की जान जा चुकी है और शव के पास इंजेक्शन मिले थे।
174 की कार्रवाई में सिमट गए मामले
नशे से होने वाली मौतों में जहां परिवार वाले बदनामी के डर से केस दबाने की कोशिश करते हैं वहीं पुलिस भी परिवार वालों की हां में हां मिलाकर केस को ठंडे बस्ते में डाल देती है। जांच के नाम पर पुलिस परिवार के किसी सदस्य के बयान पर 174 की कार्रवाई कर मामला रफा दफा कर देती है। पुलिस ने ऐसे मामलों में आज तक अपने स्तर पर जांच करने की कोशिश तक नहीं की कि आखिर मरने वाले ने नशा कहां से लिया और मौत के जिम्मेदार कौन हैं। इसी चक्कर में इलाके में नशा तस्कर फल फूल रहे हैं और पुलिस पंगू साबित हो रही है।
लोगों की शिकायत का भी नहीं होता असर
यदि नशे की तस्करी के मामलों की बात की जाए तो समय समय पर पुलिस पब्लिक मीटिग में नशे की रोकथाम के लिए सहयोग की मांग करती है। जब लोग आगे आते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं होती। ऐसा ही कुछ माह पहले हुआ था जब लोगों ने पुलिस को तस्कर की जानकारी दी, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लोगों ने तस्करों के नाम पोस्टरों पर लिखकर माहिलपुर इलाके में जगह-जगह चिपकाए थे। इसके बावजूद पुलिस ने एक्शन लेने के बजाय मामले पर पर्दा डाल दिया। कुछ गांव ऐसे हैं जहां हर घर में नशा बिकता है और समय समय पर वीडियो भी इंटरनेट मीडिया पर वायरल होता है।
जांच करते हैं, लोग सहयोग दें : थाना प्रभारी
इस संबंध में जब गढ़शंकर के थाना प्रभारी इकबाल सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच होती हैं पर लोगों का सहयोग जरूरी है। जब उनसे इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुई वीडियों के बारे में पूछा गया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।