ईश्वर कण-कण में विराजमान है, सिर्फ श्रद्धा चाहिए: महंत
पुराने समय की बात है राक्षस राज अपने पुत्र को भगवान का नाम छोड़ने के लिए धमका रहा था दूसरी ओर पुत्र पिता की दुष्टता छोड़ प्रभु में मन लगाने व सन्मार्ग से चलने की शिक्षा देता था।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : पुराने समय की बात है राक्षस राज अपने पुत्र को भगवान का नाम छोड़ने के लिए धमका रहा था, दूसरी ओर पुत्र पिता की दुष्टता छोड़ प्रभु में मन लगाने व सन्मार्ग से चलने की शिक्षा देता था। पुत्र पिता हिरण्यकश्यप जैसे राक्षस को शिक्षा दे रहा था। लेकिन वह यह सहन नहीं कर सका और अकड़ कर कहने लगा, तेरा भगवान कहां है बता, प्रह्लाद बोला पिता जी मेरे प्रभु तो घट-घट में बसते हैं। वह तो सर्वत्र हैं, जो मनुष्य सच्चे भाव से उन्हें देखने की इच्छा करें, उसे प्रभु अवश्य दिखते हैं। मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में जयेष्ट महीने की संक्रांति, परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया के अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन करते हुए तपोमूर्ति महंत राज गिरी ने सत्संग में उक्त चर्चा की। आगे कहा, पुत्र के ऐसे वचन से पिता का क्रोध अनेक गुना बढ़ गया। उस दैत्य ने एक गर्म और दहकते लोहे के खंभे को बताकर पुत्र से कहा, हे मूर्ख तेरा प्रभु सर्वत्र है, तो इस खंभे में भी होगा इसलिए इसे दोनों हाथों से पकड़। उसी समय प्रहलाद ने देखा कि खंभे के ऊपर चींटी चल रही थी। इससे उसे यकीन हो गया कि प्रभु यहां भी मौजूद है। इसके बाद प्रह्लाद जैसे ही खंभे को पकड़ने लगा तो उसी समय खंभे को फाड़कर प्रभु नृसिंह रूप धारण करके प्रकट हुए और उन्होंने दुष्ट हिरण्यकश्यप का नाश किया। ब्रह्मादिक देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर प्रह्लाद को उसके पिता की राजगद्दी पर बिठाया और अनेक उत्तम वरदान देकर व भक्त का मन प्रसन्न करके प्रभु अंतध्र्यान हो गए। प्रह्लाद ने प्रभु से ऐसा वरदान मांगा था कि उसके कुल में प्रभु के भक्त उत्पन्न हों। इस वरदान को साबित करने के लिए प्रह्लाद के कुल में भक्त बलि राजा का जन्म हुआ। महंत ने कहा, ईश्वर हर जगह व्याप्त है, सच्चे मन से पुकारो तो वह आते हैं। इस अवसर पर डा. रविद्र सिंह, राजिद्र मेहता, रमन गोल्डी उपस्थित थे।