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श्वास पर नियंत्रण रखना ही है प्राणायाम : साध्वी शिप्रा भारती

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की और से स्थानीय आश्रम गौतम नगर में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी शिपरा भारती जी ने ध्यान पर व्याख्यान दिया। उन्होंनें कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि गो गोचर जहां लग मन जाई, सो सब माया जानो भाई अर्थात जहां हमारी इंद्रियां जाती हैं। जिस ²श्य या पदार्थ का वे अनुभव करती हैं। वह सब माया स्वरुप हैं, अनित्य है। आगे उ

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 04:15 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 05:10 PM (IST)
श्वास पर नियंत्रण रखना ही है प्राणायाम : साध्वी शिप्रा भारती
श्वास पर नियंत्रण रखना ही है प्राणायाम : साध्वी शिप्रा भारती

जेएनएन, होशियारपुर

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दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर गौतम नगर आश्रम होशियारपुर में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी शिप्रा भारती ने ध्यान पर व्याख्यान दिया।

उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि गो गोचर जहां लग मन जाई, सो सब माया जानो भाई। अर्थात जहां हमारी इंद्रियां जाती हैं, जिस दृश्य या पदार्थ का वे अनुभव करती हैं, वह सब माया स्वरूप हैं। अनित्य है।

उन्होंनें कहा कि गणित के सूत्रों के खोजकर्ता आर्कमीडिज कहते हैं कि वह संपूर्ण सृष्टि को अंगुली पर उठा सकता है, अगर उन्हें उस स्थिर ¨बदु का पता चल जाए। आर्कमीडिज की यह बात सारगर्भित है। जैसे एक चक्की तभी धूम पाती है, जब उसके केंद्र में एक किल्ली लगी होती है। इसी प्रकार सकल चलायमान सृष्टि के केंद्र में भी कोई तो आधारभूत स्थिर बिंदु होना चाहिए। आर्कमीडिज का इशारा भी उसी परम ¨बदु की ओर था। मगर, आर्कमीडिज उस बिंदु को बाहरी अस्थिर जगत में खोजते रहे, इसलिए सदा असफल रहे।

साध्वी ने कहा कि आज हमारी हालत भी आर्कमीडिज जैसी है। हम भी परम शांति पाने के लिए अलग-अलग ध्यान पद्धतियों को अपना रहे हैं। इन सारी ध्यान पद्धतियों का प्रभाव जल पर ¨खची रेखा की तरह क्षणिक होता है।

इसी के बारे में तुलसीदास जी ने पहले कहा है कि अनित्य पदार्थो से कभी नित्य पदार्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। श्वास पर नियंत्रण या शोधन ध्यान नहीं प्राणायाम कहलाता है। अर्थात प्राण संबंधी व्यायाम अंत में।

उन्होंने कहा कि उस स्थिर ¨बदु को प्राप्त करने के लिए हमारे सभी शास्त्रों में बताया गया है। बाहरी नेत्रों को बंद कर लेना ध्यान नहीं बल्कि दिव्य नेत्र के खुल जाने से ध्यान की शुरुआत होती है। हमें भी ऐसे महापुरुष की जरूरत है, जो हमारे दिव्य नेत्र को खोलकर ध्यान की सनातन पुरातन प्रक्रिया के बारे में बोध करवा दे। तभी हम ध्यान की सनातन पुरातन विधि को समझ पाएंगे।


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