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परोपकार ही मानवता की निशानी : जिदा बाबा

परोपकार दो शब्दों के मेल से बना है। पर-उपकार अर्थात दूसरों की भलाई करना।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 04:59 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 04:59 PM (IST)
परोपकार ही मानवता की निशानी : जिदा बाबा
परोपकार ही मानवता की निशानी : जिदा बाबा

संवाद सहयोगी, दातारपुर

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परोपकार दो शब्दों के मेल से बना है। पर-उपकार, अर्थात दूसरों की भलाई करना। परोपकार ऐसी विभूति है, जो मानव को मानेव कहलाने का अधिकारी बनाती है। यह मानवता की कसौटी है। परोपकार ही मानवता है, जैसा कि राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने लिखा है, वहीं मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।

दुर्गा माता मंदिर दलवाली में रविवार धर्म चर्चा करते हुए आध्यात्मिक विभूति राजिदर सिंह जिदा बाबा ने कहा केवल अपने दुख-सुख की चिता करना मानवता नहीं, पशुता है। उन्होंने कहा कि परोपकार ही मानव को पशुता से सदय बनाता है। राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के अनुसार यह पशु प्रवृत्ति है कि जो आप-आप ही चरे। जिदा बाबा ने कहा वस्तुत: निस्वार्थ भावना से दूसरों का हित-साधन ही परोपकार है। मनुष्य अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार परोपकार कर सकता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी रूप में प्रकट की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप हैं। किसी पागल अथवा रोगी की सेवा करना अथवा किसी भूखे को अन्नदान करना भी परोपकार है। किसी को संकट से बचा लेना, किसी को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुखी-निराश को सांत्वना देना-ये सब परोपकार के ही रूप हैं। कोई भी कार्य, जिससे किसी को लाभ पहुंचाता है, परोपकार है, जो अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार अनेक रूपों में किया जा सकता है। यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही स्वार्थ-साधना में लगा रहे तो समाज में विश्रृंखलता उत्पन्न हो जाएगी। जब किसी को समाज के हित की चिता न होगी तब समाज उन्नति नहीं कर सकेगा। इस प्रकार से व्यक्तिगत उन्नति भी असंभव है। अत: मानव-समाज का आदर्श कर्म परोपकार ही होना चाहिए।


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