शरद पूर्णिमा को चंद्रमा धरती पर करता है अमृतवर्षा : महंत राज गिरी
शरद पूर्णिमा से शरद ऋतु यानी सर्दियों की शुरुआत होती है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : शरद पूर्णिमा से शरद ऋतु यानी सर्दियों की शुरुआत होती है। इसलिए इस दिन को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। हिदू धर्म में शरद पूर्णिमा की रात को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। मां कामाक्षी मंदिर कमाही देवी में वीरवार को तपोमूर्ति महंत राज गिरी जी ने प्रवचनों की वर्षा की।
उन्होंने कहा कि इस दिन को न केवल हिदू धर्म में बल्कि वैज्ञानिक तौर पर भी श्रेष्ठ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से विशेष प्रकार की ऊर्जा धरती पर आती है। महंत जी ने कहा कि अगर हिदू आस्थाओं की मानें तो इस रात चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण हो धरती पर अमृत वर्षा करता है। इसी ऊर्जा को ग्रहण करने का महत्व इस रात्रि को है। शरद पूर्णिमा का महाप्रसाद है अमृत वाली खीर। महंत जी ने कहा कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से निकलने वाली ऊर्जा को अमृत के समान चमत्कारी माना जाता है।
शरद पूर्णिमा के अगले दिन चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर खाएं। इस रात सभी को चंद्रमा के दर्शन कर चांदनी में बैठना चाहिए। इस दिन हल्दी का प्रयोग नहीं किया जाता है। संभव हो तो खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। शरद पूर्णिमा का प्राचीन महत्व के बारे में महंत जी ने कहा कि इस दिन चंद्र भगवान का महत्व बहुत अधिक है।
जब भगवान श्री कृष्ण गोपियों से उनके कुछ पल के अभिमान के कारण दूर चले गए थे। तब गोपियों ने भगवान को पाने की इच्छा से मां कात्यायनी की पूजा की थी। गोपियां अपने घर-परिवार को छोड़ कर भगवान की मुरली की आवाज सुनकर दौड़ी चली आई थीं। शरद पूर्णिमा की ही वो रात थी जब श्री कृष्ण गोपियों से आकर मिले थे। इसी रात को महारास भी हुआ था।