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लीची के बाग से सालाना सात लाख कमाई कर रहे बुआ दास

हमारे पुरखों द्वारा लगाए पेड़ पौधों का हम आज भी आनंद मानने के साथ उनकी इस देन से कारोबार भी कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 06:54 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 06:54 PM (IST)
लीची के बाग से सालाना सात लाख कमाई कर रहे बुआ दास
लीची के बाग से सालाना सात लाख कमाई कर रहे बुआ दास

महिदर सिंह अर्लीभन्न, शंकर श्रेष्ठ, कलानौर, दीनानगर

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हमारे पुरखों द्वारा लगाए पेड़ पौधों का हम आज भी आनंद मानने के साथ उनकी इस देन से कारोबार भी कर रहे हैं। कलानौर के गांव गुआरा के 90 साल के बापू बुआ दास ने वातावरण शुद्ध रखने व लंबी उम्र वाले लीची का बाग लगाने के अलावा अन्य फलदार पौधे कई साल पहले लगाए थे। लीची का बाग बनने से उनका परिवार इसी बाग से अपने घर का खर्च चला रहा है।

बुआ दास ने बताया कि लीची के बूटे की आयु 180 साल के करीब होती है। उनके हाथों से लगाए गए पौधों के कारण उनके परिवार की आने वाली पीढ़ी उन्हें याद रखेंगे। उन्होंने बताया कि उनका जन्म 21 सितंबर 1930 में गांव गुआरा में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद खेतीबाड़ी को अपना धंधा बना लिया। पौधे लगाकर उनकी संभाल करने का शौक था। विभिन्न प्रकार के पौधों के अलावा लंबी आयु वाले पौधे लीची का ढाई एकड़ जमीन में बाग 1998 में इस मनोरथ से लगाया था कि यहां लीची का बाग लगाने के साथ पानी की बचत होगी। वहीं लीची की आयु 180 साल से अधिक होने के कारण उसकी आने वाली पीढ़ी उसको याद रखेगी। लीची के बिजनेस में वे हर साल छह से सात लाख का बिजनेस करते हैं।

बापू बुआ दास बुजुर्ग होने के बाद भी उनका बेटा अश्विनी कुमार व पोता राहुल शर्मा के अलावा पुत्री सकीजा द्वारा अपने पुरखा के बाग की संभाल की जा रही है। अश्विनी कुमार व राहुल शर्मा ने बताया कि उनके बुजुर्ग बुआ दास द्वारा लगाए लीची के बाग से जहां वातावरण शुद्ध हो रहा है। वहीं गेहूं व धान की फसल से अधिक आमदनी हो रही है। भले ही इस बार लॉकडाउन के दौरान लीची के बाग में पिछले साल के मुकाबले कमाई कम रही। लेकिन उन्हें इस बात को कोई दुख नहीं है। 54

पुरखों के बाग से कर रहे कमाई : अजीत सिंह

दीनानगर के अजीत सिंह ने बताया कि 1984 में उनके पिता ध्यान सिंह ने लीची का बाग लगाया था। धीरे-धीरे कर बाग काफी जगह में फैलता गया। अब वे साल में आठ से दस लाख रुपये साल में कमाई कर रहे हैं। वे अपने पुरखों को कभी नहीं भूल सकते, क्योंकि वर्तमान समय में बहुत से लोग रोजगार न होने के कारण काफी परेशान होते देखे जा रहे हैं। उनके पुरखों ने उन्हें बिजनेस देकर उन्हें रोजगार दिया है। उनके बाग से मुंबई, दिल्ली, हरियाणा में भी लीची जा रही है। वे अपने बच्चों के लिए भी यही बिजनेस स्टैंड करके दे रहे हैं। 53

पिता की देन को सारी उम्र नहीं भूलूंगा : भारती ओहरी

दीनानगर के भारती ओहरी ने बताया कि उनका बाग दीनानगर की मास्टर कालोनी में है। उसके पिता जय चंद ओहरी ने 1984 में लीची का बाग लगाया था। अब पिता के बाद उसने इस व्यापार को संभाल लिया। लीची के बाग से वे अपने परिवार का पेट पाल रहा है। बाग से उसकी दस लाख के करीब सालाना आमदन है। उसका लीची का व्यापार पंजाब राज्य के अन्य जिलों व हिमाचल, दिल्ली में भी चल रहा है। उनके पुरखों ने बाग लगाकर उन्हें एक रोजगार दिया है।


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