दफ्तरों में होने लगी पब्लिक डीलिंग, अस्पताल में ओपीडी
कोरोना संकट की कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने के बाद जिले में धीरे-धीरे व्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है।
राजिदर कुमार, गुरदासपुर
कोरोना संकट की कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने के बाद जिले में धीरे-धीरे व्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। शारीरिक दूरी का पालन के साथ सरकारी कार्यालयों का संचालन पूरे स्टाफ के साथ शुरू हो चुका है। इससे पहले लगभग छह महीने सरकारी कार्यालयों में आधे स्टाफ के साथ काम चला। वहीं अधिकारियों ने कोरोना के डर से पब्लिक डिलिग तक बंद कर दी थी। यहां तक कि कई अधिकारियों ने अपने आप को आइसोलेट तक कर लिया था।
अब कोरोना के कमजोर होते ही अति आवश्यक सेवाएं सहित दूसरे व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी शर्तो के आधार पर पूरी तरह से खोल दिए गए हैं। सरकारी कार्यालयों में भी रौनक लौटने लगी है। पब्लिक डिलिग भी शुरू हो चुकी है। कोरोना से बचाव के उपायों के साथ जनता भी सामान्य दिनों की तरह खुद को ढालने का प्रयास कर रही है। नए सिरे से काम धंधा आरंभ हो जाने के कारण मजदूर वर्ग को बड़ी राहत मिली है। कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन का पालन करते हुए सभी लोग धीरे-धीरे अपने काम में पुराने दिनों की तरह लौटने लगे हैं। लोगों का कहना है कि बेशक जान है तो जहान है मगर बिना जहान के जान भी तो बेजान है। मजदूरों के समक्ष हो गया था आजीविका का संकट
कोरोना से बचाव के लिए पहले और दूसरे चरण के लाकडाउन में सभी कार्यालय बंद कर दिए गए थे। अति आवश्यक सेवाओं को छोड़कर दूसरी सभी गतिविधियां बंद हो गई थीं। लोगों को अकारण घरों से बाहर न निकलने के लिए लगातार प्रेरित किया जा रहा था। खासकर मजदूर वर्ग के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया था। शहरी मजदूरों को भी मिला काम
निर्माण सामग्रियों से जुड़ी व्यावसायिक प्रतिष्ठानें भी अब पूरी तरह से खुल गई हैं। सीमेंट, सरिया सहित दूसरी सामग्रियों की बिक्री होने से अधूरे पड़े निर्माण कार्य आरंभ हो चुके हैं। शहरी मजदूरों को इन निर्माण कार्यो में काम मिलने लगा है। लाकडाउन के पहले व दूसरे चरण में जो तपस्या उन्होंने की, वह संकट की घड़ी अब धीरे-धीरे सामान्य होती नजर आ रही है। घरों में रंग-रोगन का काम भी कराया जा रहा है। अलग-अलग श्रेणी के कुशल कामगार अपने-अपने कार्य क्षेत्र में पूरी मुस्तैदी के साथ काम में लग गए हैं। हालांकि जब जिला पूरी तरह से लाक था तो मजदूर वर्ग को रोटी के लाले पड़ गए थे। ओपीडी में दिखने लगे डाक्टर
कोरोना जब सितम ढाह रहा था तो सिविल अस्पताल के डाक्टर भी ओपीडी देखने से घबरा रहे थे। लगभग पूरे छह महीने ज्यादातर डाक्टरों ने ओपीडी नहीं करी। यहां तक कि वे अपनी सीट पर ही नहीं बैठते थे। इस कारण दूर दराज से आने वाले लोगों को डाक्टरों के नहीं मिलने से बैरंग लौटना पड़ता था। अब कोरोना कम होने के साथ ही डाक्टर भी अपनी सीट पर दिखाई देने लगे हैं। हालांकि अभी भी दो बजे तक ओपीडी देखने की बजाय डाक्टर पहले ही 12 बजे के आसपास अपनी सीट से उठ जाते हैं। बाजारों में लौटी रौनक
अक्टूबर माह में कोरोना के केस बहुत कम आ रहे हैं। वहीं लोगों में भी कोरोना का खौफ कम होने लगा है। शहर के बाजारों में पहले की तरह रौनक लौटने लगी है। रविवार को भी बाजार खुलने से रौनक पहले से ज्यादा हो गई है। त्योहारों के कारण लोग खरीदारी करने के लिए बड़ी संख्या में बाजारों में पहुंच रहे हैं। हालांकि लोग एक गलती जरूर कर रहे हैं कि शारीरिक दूरी व मास्क पहनना अब अधिकतर लोगों ने छोड़ दिया। लोगों को समझना चाहिए कि अभी कोरोना कम हुआ है खत्म नहीं। जागरूकता जरूरी : डीसी
डीसी मोहम्मद इशफाक का कहना है कि अभी जागरूकता जरूरी है। कोरोना भले की कम हो गया है, लेकिन नियमों का पालन हमें आगे भी इसी तरह करते रहना चाहिए।