खुद की जमीन पर पौधे तैयार कर बांट रहे जसबीर
निकटवर्ती गांव हयात नगर के रहने वाले 75 वर्षीय जसबीर सिंह काहलों ने पर्यावरण संभाल के लिए करीब सात लाख पौधे मुफ्त बांटे हैं।
सुनील थानेवालिया, गुरदासपुर
निकटवर्ती गांव हयात नगर के रहने वाले 75 वर्षीय जसबीर सिंह काहलों ने पर्यावरण संभाल के लिए करीब सात लाख पौधे मुफ्त बांटे हैं। हालांकि उन्हें एक बात का दुख है कि पर्यावरण को लेकर समाज की कथनी और करनी में अंतर है। उम्र के जिस पड़ाव में लोग आराम करने को प्राथमिकता देते हैं वे उसमें भी लोगों को पर्यावरण प्रति सचेत बनाने को प्रयासरत हैं।
कोविड-19 के इस दौर में भी जसबीर सिंह अपने घर से बाहर निकल लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। जज्बा इस कदर है कि कोविड के इस समय में भी वे दो बार जरूरतमंद मरीजों को अपना रक्तदान कर चुके हैं। पर्यावरण से ऐसा प्रेम की मानो दूषित हो रहे इस पर्यावरण को बचाने के लिए अकेले ही पौधारोपण के इस युद्ध में डटे हों। वे लोगों को अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए भी प्रेरित करते है। जसबीर अक्सर कहते हैं कि अपना जन्मदिन व शादी की सालगिरह पर एक पौधा जरूर लगाएं। जसबीर काहलों ने बताया कि वे अब तक सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों, धार्मिक स्थलों और खास कर ग्रामीण मेलों में लोगों को मुफ्त पौधे बांट चुके हैं। काहलों ने कहा कि 1971 की जंग के दौरान उन्होंने पहली बार सैनिकों के लिए रक्तदान किया था। तब से यह सिलसिला जारी है। वह अब तक 180 बार रक्तदान कर चुके हैं। इनके लिए उन्हें 4 बार स्टेट अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसके साथ ही जसबीर सिंह मरणोंपरांत अपना शरीर व आंखों मेडिकल कॉलेज अमृतसर में दान कर चुके हैं। अपनी छह एकड़ जमीन में तैयार करते हैं पौधे
काहलों हयात नगर में करीब अपनी छह एकड़ जमीन में परिवार के गुजारे के लिए सब्जी आदि के साथ-साथ पौधों की पनीरी भी तैयार करते हैं। इसके लिए वे बीज एकत्रित करने के लिए बागों के चक्कर काटते रहते हैं। यदि उन्हें कोई औषधीय पौधा दिखाई दे जाए तो उसकी देखभाल के लिए उसे घर ले आते हैं। फिर उसी पौधे से आगे पनीरी तैयार करते हैं, जिनसे पौधे बनने के बाद उन्हें लोगों में मुफ्त बांट देते हैं। उनका सारा दिन इन्हीं पौधों की देखभाल में गुजरता है। जब पौधे जमीन में लगने के काबिल हो जाते हैं तो इन्हें लेकर बांटने के लिए निकल जाते हैं। यह क्रम कई वर्षों से जारी है। 32
परिवार से मिली पर्यावरण को प्रेम करने की सीख
जसबीर काहलों ने बताया कि पर्यावरण के प्रति प्रेम उन्हें अपने परिवार से ही मिला है। उनके पिता साधू सिंह और दादा झंडा सिंह का बंटवारा से पहले बूढ़ा ढल्ला (अब पाकिस्तान)में फलों का बाग था। बंटवारे के बाद उनका परिवार गुरदासपुर के गांव हयातनगर में आकर बस गया। जहां पर उनके दादा ने फिर से जमीन लेकर फालसा का बाग तैयार कर लिया। इस दौरान उनके पिता सेना में भर्ती हो गए। वहां से रिटायर होने के बाद उन्होंने बाग की देखभाल करनी शुरू कर दी। उन्हें पौधों की सेवा करते देख उनके मन में भी पर्यावरण को लेकर प्रेम पैदा हो गया। वर्ष 1991 में शुगर मिल बटाला से रिटायर होने के बाद उन्होंने लोगों में फ्री पौधे बांटने का काम शुरू किया, जो आज तक जारी है। पौधों से दवाइयां भी करते हैं तैयार
जसबीर सिंह ने बताया कि पौधे के लिए पैसे जुटाने के लिए वे खाली बोतलों और वेस्ट मटीरियल से गुलदस्ते तैयार करते हैं। जिले में लगने वाले मेलों में इन्हें बेच कर पैसे जुटाते हैं। लेकिन मार्च से कोरोना वायरस की दस्तक के बाद अब वह मेले न लगने के कारण चंदा नहीं जुटा पा रहे है। इसके चलते वे अपनी तरफ से ही जितने पैसे इनके पास रहते है, उसी से उपज करके पौधे निकलने पर मुफ्त लोगों में बांटते है। इसके अलावा वे नीम, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, नियाजबोज, कवार गंधल, पित्तपापड़ा, गुलाब, फिटकरी, अज्जवायन, सौंफ, जीरा, हरी इलायची को मिक्स कर दवाई तैयार करते हैं, जो लगभग सभी बीमारियों के लिए गुणकारी होती हैं। इससे यहां रक्त साफ होता है। वहीं पत्थरी, गैस, एलर्जी, दमा, टाइफाइड, पीलिया, बावासीर, जकाम, पेट दर्द आदि में काफी राहत मिलती है। कोरोना के कारण पौधे बांटने का काम फीका
काहलों ने बताया कि वह हर साल विभिन्न स्थानों पर करीब 10 हजार पौधे बांटते हैं। इनमें फासला, पपीता, सुखचैन, भाम, नीम आदि होते है। इसके अलावा गलो, अश्वगंधा, तुलसी, नियाजबोज, कवार गंधल, पित्तपापड़ा, कड़ी पत्ता, स्टीविया आदि के पौधे बांटते हैं। पौधे बांटने के अलावा वह पौधों की देखभाल करने के बारे में भी जानकारी देते हैं। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण पौधे बांटने का काम फीका ही रह गया है।