पंजाबी सभ्याचार व इतिहास से जुड़ी वस्तुओं को सहेज रहे जैकब तेजा
आज के आधुनिक दौर में जहां हर इंसान पैसे कमाने के लिए मशीन की तरह काम कर रहा है।
सुनील थानेवालिया, गुरदासपुर : आज के आधुनिक दौर में जहां हर इंसान पैसे कमाने के लिए मशीन की तरह काम कर रहा है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी है, जो अपनी जिदगी से समय निकाल कर अपने सभ्याचारक को जीवित रखने के लिए लगातार काम करते है। ऐसे ही लोगों में शामिल है, गुरदासपुर के निवासी जैकब तेजा।
जैकब तेजा का जन्म 10 अप्रैल 1980 पिता सैमुअल मसीह व माता एलस के घर में हुआ। मौजूदा समय वह अपने परिवार के साथ हरदोछन्नी रोड पर रह रहे है। जैकब तेजा को बचपन से ही पुराने सभ्याचार व इतिहास से जुड़ी वस्तुओं को अपने घर में संभाल कर रखने का शौक था। इसके चलते उन्होंने घर में एक मिनी म्यूजियम बनाया हुआ है। इसमें पुरातन संदूक, आटा चक्की, चरखा, रूई बेलनी, कोहलू का माडल, खेस, नाड़ा गुनने का अड्डा, फुलकारी, गगरा, ठोकर, साग काटने वाला औजार, हमाम, उखली मोला, खरल, गड्ढे का माडल, हल, छज्ज, गुल्ली डंडा, पुरानी तवे वाली म्यूजिक मशीन, पुराना रेडियो, हरमोनियम, ढड, तुंबी, अलगोजे, हुक्का, सुहागी, घड़ा, भड़ौली, पटारी, सगी फुल, कुंडी, कैंठा, घोटना, पायल, रोपड़ी ताला, बलदों की टलियां, बिना चेन वाला साइकिल, तांबे व पीतल के बर्तन, पुराने सिक्के रखे हुए है। इस म्यूजियम को देखने के लिए लोग दूर-दूर से लोग आते है। उनके इस शौक में उनका परिवार उनकी सहायता करता है।
हर साल करवाते है कला मुकाबले-
जैकब तेजा ने बताया कि वह अपनी संस्था लोक सभ्याचारक पिंड के माध्यम से हर साल सुनक्खी पंजाबण मुटियार व विरासती लोक कलाओं के मुकाबले करवाते है। इसके अलावा वह दस्तारबंदी के मुफ्त सिखलाई कैंप लगातार करवाते आ रहे है। भंगड़ा कोच होने के चलते 2002 से लगातार भंगड़ा सिखलाई कैंप भी चला रहे है। इसके चलते उन्हें जिला प्रशासन व विभिन्न शख्सियतों द्वारा समय-समय पर सम्मानित भी किया गया है।