बाबा नानक की बरात के स्वागत के लिए ससुराल घर सजकर तैयार
जगत पिता श्री गुरु नानक देव जी और माता सुलक्खणी जी के पावन विवाह पर्व समारोह मनाने के लिए बटाला शहर सज धज कर पूरी तरह से तैयार हो चुका है।
सुनील थानेवालिया, बटाला
जगत पिता श्री गुरु नानक देव जी और माता सुलक्खणी जी के पावन विवाह पर्व समारोह मनाने के लिए बटाला शहर सज धज कर पूरी तरह से तैयार हो चुका है। गुरुद्वारा श्री कंध साहिब जहां गुरु नानक देव जी की बरात ठहरी थी और गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब जो गुरु जी का ससुराल घर था, दोनों पावन स्थानों को गुरु की बरात के स्वागत के लिए खूब सजाया गया है।
पूरे शहर में झंडियां लगाकर दुल्हन की तरह सजाया गया है। जगह-जगह पर संगत के लिए लंगर लगाए गए हैं। कई स्थानों पर मेले में सैकड़ों दुकानें सजी हैं। बच्चों व बड़ों के लिए छोटे बड़े झूले और खेल तमाशे लगे हैं। आज के दिन बाबा नानक दूल्हा बनकर बटाला आए थे
आज के दिन गुरु नानक देव जी बटाला में दूल्हा बनकर आए थे। उनकी शादी बटाला के रहने वाले मूल चंद व चंदो रानी की बेटी बीबी सुलक्खनी के साथ हुई थी। भाई संतोख सिंह के लिखे गुरु नानक चमत्कार के अनुसार गुरु नानक और बीबी सुलक्खनी का विवाह 14 भाद्र सम्मत 1544, सितंबर 1478 को हुआ था। गुरु नानक का जन्म स्थान राए भोए दी तलवंडी (ननकाना साहिब पाकिस्तान) बटाला से बहुत दूर था। इसलिए गुरु नानक की बरात पहले सुल्तानपुर लोधी आई थी। सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी की बहन बीबी नानकी का ससुराल था। दो दिन विश्राम के बाद गुरु जी के बहनोई जयराम ने बरात के बटाला जाने की तैयारियां शुरू की। जयराम ने यह खबर जब सुल्तानपुर लोधी के नवाब दौलतखान लोधी को दी तो नवाब ने बरात के लिए अपने हाथी, घोड़े, रथ, तंबू और शाही सामान भेंट कर दिया। तिल्ले के जड़ाऊ वस्त्र व गहनों से सजे धजे दूल्हे के सिर पर सेहरा सजाकर बरात शानो शौकत के साथ हाथी, ऊंट, घोड़े, पालकियों पर बटाला पहुंची। यहां पहुंचने पर बरात का शाही स्वागत किया गया। बाबा नानक ने अग्नि के फेरे लेने से कर दिया था इंकार
जब बाबा नानक और सुलक्खनी के फेरों का समय आया तो फेरों के लिए वेदी व हवन कुंड तैयार किया गया। लेकिन बरात के साथ आए पंडित हरदयाल ने लड़की वालों के पंडित को बताया कि नानक ने अग्नि के फेरे लेने से मना कर दिया है। पंडित हरदयाल ने लड़की वालों को बताया कि दूल्हा पुरातन रीति अनुसार विवाह नहीं करेगा। तब गुरु जी ने पूछने पर बताया कि वेद मंत्र चारों युगों में कायम रहेंगे, लेकिन कलयुग में मूलमंत्र का पहरा रहेगा। तब उन्होंने मूलमंत्र लिखकर एक चौकी पर रखा और उसके फेरे ले लिए। 102 साल पहले शुरू हुआ मेला
गुरु नानक देव जी का विवाह पर्व मनाने की शुरुआत करीब 102 साल पहले हुई बताई जाती है। ननकाना साहिब के साके से पहले 1917-18 के दौरान गुरु नानक का विवाह पर्व मनाने के सुझाव पर अमृतसर की संगत बरात के रूप में रेल द्वारा बटाला पहुंची थी। बरात को रेलवे स्टेशन के निकट प्रेम नगर के एक मंदिर में ठहाराया गया। अगले दिन गुरुद्वारा डेरा साहिब के महंत केसरा सिंह ने श्री बीड़ साहिब को अपने सिर पर उठाकर नगर कीर्तन की अगुवाई की। तब से मेला लगना शुरू हो गया। विवाह पर्व पर सुल्तानपुर लोधी से बरात रूपी नगर कीर्तन देर रात बटाला पहुंचता है और अगले दिन गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब से भव्य नगर कीर्तन निकलता है। नगर कीर्तन के दौरान श्रद्धालु गुरु ग्रंथ साहिब पर सेहरे चढ़ाते है। इन्हीं सेहरों का प्रसाद लोगों में बांटा जाता है। जिन्हें प्रसाद में सेहरा मिलता है, वे खुद को भागयशाली समझते है। अगर शादी के लगन रुके हों तो जल्दी शादी होती है, ऐसा लोग मानते हैं।