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सीमा पर मेले जैसा माहौल... संगत की चहल-पहल से चहक उठा तीन किलोमीटर लंबा कॉरिडोर

संगत कॉरिडोर टर्मिनल देखने और सीमा से श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने उमड़ रही है। पूरे कॉरिडोर पर संगत की चहल-पहल से माहौल जैसे खिल उठा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 12:33 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 09:49 AM (IST)
सीमा पर मेले जैसा माहौल... संगत की चहल-पहल से चहक उठा तीन किलोमीटर लंबा कॉरिडोर
सीमा पर मेले जैसा माहौल... संगत की चहल-पहल से चहक उठा तीन किलोमीटर लंबा कॉरिडोर

डेरा बाबा नानक [महिंदर सिंह अर्लीभन्न]। भारत-पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर खुलने के बाद हजारों की संख्या में संगत कॉरिडोर, टर्मिनल देखने और सीमा से श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने उमड़ रही है। पूरे कॉरिडोर पर संगत की चहल-पहल से माहौल जैसे खिल उठा है। संगत के चेहरे पर खुशी और उत्साह साफ देखा जा सकता है।

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चंडीगढ़, जम्मू सहित पंजाब के संगरूर, मानसा, बठिंडा, तरनतारन सहित कई जिलों से हजारों लोग गाड़ियों में करतारपुर कॉरिडोर देखने अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचे। सीमा पर दर्शनी स्थल पर श्री करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए कतारों में कई घंटे लोग इंतजार करते रहे। इनमें से बहुत से लोग ऐसे भी थे जो बिना पासपोर्ट व रजिस्ट्रेशन के पहुंचे, लेकिन उनको उस पार जाने की इजाजत नहीं मिली। उन्होंने गुरुद्वारा साहिब का दूर से ही दीदार किया। सेना के कई जवान भी दर्शन स्थली से ही गुरुद्वारा साहिब का दीदार करने पहुंचे।

शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। कड़े सुरक्षा प्रबंधों के कारण लोग टर्मिनल और दर्शनी स्थल तक नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन रविवार को संगत सीमा पर उमड़ पड़ी। मोहाली से आए अमर सिंह कहते हैं कि आज का दिन उनके जीवन का सबसे खुशी वाला है। उन्होंने सीमा पर आकर पहली बार अपने पूर्वजों की जन्मभूमि को इतने करीब से देखा है। विभाजन के बाद उनके पूर्वज भारत आ गए थे। कॉरिडोर खुलने से दोनों देशों के बीच भाईचारा बढ़ेगा। प्रोफेसर मनजीत सिंह कहते हैं कि करतारपुर कॉरिडोर भारत-पाक के बीच सिख कौम का ब्रिज है। 72 साल बाद लोग फिर पाकिस्तान की भूमि पर पैर रख पाएंगे।

करतारपुर साहिब जाने के लिए मानसा से आधार कार्ड लेकर पहुंचे श्रद्धालु

श्री करतारपुर साहिब जाने के लिए क्या प्रक्रिया है लोग अब भी उससे अनजान हैं। रविवार को ऐसे श्रद्धालु भी कॉरिडोर पर पहुंचे जो अपने साथ आधार कार्ड लेकर आए थे और गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने पाकिस्तान जाना चाहते थे। मानसा से आए सुरजीत सिंह हरीके को सुरक्षा कर्मियों ने जाने से रोक दिया। उनका कहना था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने श्री करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए पासपोर्ट और फीस माफ करने की बात कही है। उन्होंने किसी भी पहचान के आधार संगत दर्शन करने जा सकती है। मानसा जिले से करीब 200 श्रद्धालु अपने आधार कार्ड लेकर आए हैं लेकिन टर्मिनल के पास सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें जाने से मना कर दिया गया। अब उन्हें दर्शनी स्थल से ही करतारपुर साहिब के दर्शन करने होंगे।

बिना पासपोर्ट और फीस के आए थे दर्शन करने : आनंद सिंह

जत्थेदार अनंद सिंह भर्थ भी बिना पासपोर्ट के सिर्फ पहचान पत्र लेकर पहुंचे थे। सरकार ने टर्मिनल पर मुकम्मल प्रबंध नहीं किए हैं जिस कारण फीस माफ होने के बावजूद गरीब संगत करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए नहीं जा पा रही है। अमीर लोग बिना फीस दिए फ्री में दर्शन कर आए। गरीब संगत के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

दूसरे दिन 229 श्रद्धालुओं ने किए करतारपुर साहिब के दर्शन

भारत-पाकिस्तान के बीच कॉरिडोर के उद्घाटन के दूसरे दिन रविवार को 229 श्रद्धालु गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए पाकिस्तान गए। इससे पहले शनिवार को कॉरिडोर के उद्घाटन अवसर पर 562 श्रद्धालु गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए गए थे। पाकिस्तान सरकार ने नौ से 12 नवंबर तक गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की फीस माफ कर दी है।

एक दिन में पांच हजार तक श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए टर्मिनल में 18 इमीग्रेशन काउंटर बनाए गए हैं। इन सेंटरों पर श्रद्धालु अपने दस्तावेज पर करतारपुर साहिब जाने के लिए कार्यवाही पूरी करते हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि टर्मिनल का काम अभी अधूरा है। यहां पर इंटरनेट कनेक्शन आदि की सही व्यवस्था नहीं बन पाई है जिस कारण कागजी कार्यवाही में परेशानी आ रही है।

यादगार के लिए पाकिस्तान से नक्काशी किया चकला-बेलन लेकर आए

कॉरिडोर खुलने के दूसरे दिन गुरजिंदरपाल सिंह, ऊधम सिंह और राजपाल कौर श्री करतारपुर साहिब के दर्शन कर भारत लौटे। उन्होंने बताया कि श्री करतारपुर साहिब जी के दर्शन करना उनके जीवन की लालसा आज पूरी हुई है। पाकिस्तान से यादगार के तौर पर वे नक्काशी किया हुआ चकला और बेलन खरीदकर आए हैं। इसकी लकड़ी पर तांबे की तारों से नक्काशी की गई है।

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