भटकी मानवता को सत्य से जोड़ने के लिए प्रकट होते हैं सतगुरु : महात्मा सुखदेव
मंगलवार को गांव तलवंडी में निरंकारी ब्रांच दीनानागर एवं गांववासियो के सहयोग से मिनी मानव एकता समागम का आयोजन ब्रांच के मुखी महात्मा अमरजीत की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इसमें मुख्य मेहमान के रूप में जोनल इंचार्ज महात्मा सुखदेव ¨सह उपस्थित हुए। गांव में पहुंचने पर स्थानीय श्रद्धालुओं की ओर से मुख्य मेहमान महात्मा सुखदेव ¨सह का स्थानीय संगत की ओर से भव्य स्वागत किया गया।
संवाद सहयोगी, दीनानागर : मंगलवार को गांव तलवंडी में निरंकारी ब्रांच दीनानागर एवं गांववासियो के सहयोग से मिनी मानव एकता समागम का आयोजन ब्रांच के मुखी महात्मा अमरजीत की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इसमें मुख्य मेहमान के रूप में जोनल इंचार्ज महात्मा सुखदेव ¨सह उपस्थित हुए। गांव में पहुंचने पर स्थानीय श्रद्धालुओं की ओर से मुख्य मेहमान महात्मा सुखदेव ¨सह का स्थानीय संगत की ओर से भव्य स्वागत किया गया।
कार्यक्रम दोपहर 2 बजे शुरू हुआ। इसमें सर्वप्रथम स्थानीय महापुरुषों की ओर से सतगुरु को समर्पित संगीत, भजन, विचार व कविताएं आदि पेश करके माहौल को भक्ति युक्त किया इन के बाद मुख्य मंच पर विराजमान सतगुरु स्वरूप को महात्मा सुखदेव ¨सह जी ने बताया कि सतगुरु हमेशा भटकी हुई मानवता को सत्य के साथ नाता जोड़ने के लिए प्रकट होते हैं। उन्होंने कहा कि सभी ग्रंथों में मानव जोनी को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, क्योंकि 84 लाख योनियों में से भ्रमण करने के बाद इंसान को मानव का रूप मिलता है और यदि वह इस रूप को भी माया में लिप्त होकर गुजार देता है तो, उसे पुन: 84 लाख योनियों में भ्रमण करना पड़ता है। लेकिन सतगुरु इंसान को 84 लाख योनियों में भ्रमण करने से बचाने व प्रभु परमात्मा जो कण कण में निवास कर रहा है, की जानकारी देने के लिए अवतार लेते आए हैं। उन्होंने कहा कि मानव जीवन बेहद अमूल्य है, क्योंकि इस जन्म के लिए देवी देवता भी तरसते हैं। लेकिन, इंसान इस रूप की कदर नहीं कर पाते यही कारण है कि इंसान के पास श्रेष्ठ समय होने के बावजूद भी वह इस समय की कदर नहीं कर पाता लेकिन, बाद में उसे पछताना पड़ता है। महात्मा सुखदेव जी ने कहा कि अभी भी समय है कि वह सतगुरु से परमपिता परमात्मा, निरंकार, प्रभु को जानकर अपने मूल की पहचान कर सकता है। उन्होंने कहा कि गीता के 41 अध्याय में भी लिखा है कि सतगुरु साकार रूप में प्रकट होते हैं, जबकि उनका वास्तविक मूल रूप निरंकार है। उन्होंने कहा कि जो इंसान सतगुरु से निरंकार के दर्शन कर लेते हैं और सतगुरु के कहे मुताबिक जीवन को सतगुरु के वचनों को समर्पित कर देते हैं या वास्तविक में निरंकार तो प्राप्त होते हैं, भाव की मुक्ति प्राप्त करते हैं। अंत में उन्होंने सतगुरु माता स¨वदर हरदेव जी के बताए मार्ग पर कर्म रूप से चलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद गुरु घर का लंगर वितरित किया गया। इस मौके पर महात्मा मास्टर चरंजी लाल, प्रेमचंद, ज¨तन्द्र, मंजीत आदि सहित अन्य लोग मौजूद थे।