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सुख-दुख में नहीं छोड़नी चाहिए प्रभु भक्ति : रजनी भारती

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के फाजिल्का आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम करवाया गया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 12:10 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:15 AM (IST)
सुख-दुख में नहीं छोड़नी चाहिए प्रभु भक्ति : रजनी भारती
सुख-दुख में नहीं छोड़नी चाहिए प्रभु भक्ति : रजनी भारती

संवाद सहयोगी, फाजिल्का : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के फाजिल्का आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम करवाया गया। इसमें कथा करते हुए साध्वी रजनी भारती ने कहा कि इंसान ईश्वर को केवल अपने दुखों के समय ही याद करता है। जब इंसान पर किसी तरह का कोई दुख आ जाता है। वह तभी ईश्वर को दिल से याद करता है, लेकिन जब उसका दुख दूर हो जाता है। उसके बाद फिर इंसान अपने संसार के भोग विलास में डूब जाता है और ईश्वर को भूल जाता है। इंसान के भीतर ईश्वर के लिए बिरहा केवल उसके सांसारिक दुखों के कारण ही आता है। उसकी यह बिरहा निरंतर नहीं रहती है। दुख के जाते ही इंसान की ईश्वर के लिए बिरहा भी खत्म हो जाती है। इसलिए आज हम ईश्वर से दूर होते जा रहे हैं। साध्वी ने कहा कि दुख तो हमारे किए हुए कर्मो के आधार पर आते जाते रहते हैं, लेकिन अगर ईश्वर को पाने के लिए हमारे अंदर ऐसी बिरहा जाग जाए जैसे बिरहा ईश्वर के दर्शन के लिए बाबा फरीद के अंदर थी। जैसी बिरहा श्री गुरु अर्जुन देव के अंदर अपने गुरु के दर्शन के लिए थी तो हमें कभी दुखों का पता तक नहीं चलेगा। जब तक हमारे जीवन में बिरहा नहीं है तब तक हम प्रभु के समीप भी नहीं जा सकते। आज संसार में प्रत्येक मानव संसार के भोग विलास में लिप्त है। उसके भीतर अगर कोई बिरहा है तो वह संसार का। उस ईश्वर की भक्ति, प्रेम उसके भीतर से समाप्त होता जा रहा है। यही कारण है कि आज इंसान सब बाहरी सुखों को प्राप्त करने के बाद भी भीतर से अशांत है और फिर वह शांति की खोज बाहरी जगत में करता है। लेकिन फिर भी उसके हाथ शांति तो नहीं आती। यही कारण है कि आज इंसान अपने मूल से दूर होता जा रहा है और जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं करता, भाव कि उस ईश्वर से मिलाप नहीं कर लेता तब तक वह अशांत ही रहेगा।

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