मन ही कारण संसार का और मन ही कारण मोक्ष का: पुनीत गिरी
संवाद सहयोगी, फाजिल्का श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में साधना जैसा कुछ भी नहीं है। साधना में जो मौ
संवाद सहयोगी, फाजिल्का
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में साधना जैसा कुछ भी नहीं है। साधना में जो मौलिक तत्व है, वह प्रयास है। क्योंकि बिना प्रयास के साधना नहीं हो सकती। शायद इसीलिए शुकदेव जी ने परीक्षति को प्रयास अर्थात ज्ञान, कर्म, योग करने को नहीं कहा, सीधा प्रसाद दिया। यह वचन स्थानीय गरीब चंद धर्मशाला में आयोजित श्रीमछ्वागवत कथा के दौरान महंत पुनीत गिरि महाराज ने प्रकट किए।
पुनीत गिरि जी ने कहा कि मन यदि ¨चतन छोड़ दे तो वह ईश्वर में लीन हो सकता है। कृष्ण कथा का आकर्षण मन को ईश्वर में लीन कर सकता है। कृष्ण लीला निरोध लीला है, मन का
निरोध करना है अर्थात मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष न होने का कारण है। अंग्रेजी का श द मैन, मन का ही रूपांतरण है। मन का अर्थ होता है, मनन की प्रक्रिया, मनन की क्षमता, सोच विचार की संभावना। मन तो सीढ़ी है। अगर विषयों से आसक्त हो जाए तो उतरना शुरू हो जाता है और अगर विषयों से अनासक्त हो जाए तो चढ़ना शुरू हो जाता है। इसीलिए मन ही कारण है संसार का और मन ही कारण है मोक्ष का। मन ही बांधता है, मन ही मुक्त करता है। इसलिए आज दशम स्कंध की कृष्ण लीला मन को दसवां रस प्रदान करती है। उसका रस का नाम है प्रेम रस। प्रेम है द्वार का सत्य औ यह रस हृदय में होता है। पुनीत गिरि जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएं दीं।