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डा. रिणवा के श्अिद में जाने से बदले राजनीतिक समीकरण

पिछले काफी समय से कांग्रेस की गतिविधियों से दूर रहने के कारण लगातार अटकलें लगाई जा रही थी कि पूर्व विधायक डा. महिद्र रिणवा पार्टी को छोड़ सकते हैं। वीरवार को इन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए डा. महिद्र रिणवा ने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ शिअद को ज्वाइन कर लिया है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 May 2021 10:22 AM (IST)Updated: Fri, 14 May 2021 10:22 AM (IST)
डा. रिणवा के श्अिद में जाने से बदले राजनीतिक समीकरण
डा. रिणवा के श्अिद में जाने से बदले राजनीतिक समीकरण

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : पिछले काफी समय से कांग्रेस की गतिविधियों से दूर रहने के कारण लगातार अटकलें लगाई जा रही थी कि पूर्व विधायक डा. महिद्र रिणवा पार्टी को छोड़ सकते हैं। वीरवार को इन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए डा. महिद्र रिणवा ने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ शिअद को ज्वाइन कर लिया है। कुछ समय पहले कांग्रेस पार्टी में पूर्व मंत्री रहे हंसराज जोसन के बाद अब डा. महिद्र रिणवा के शिअद में जाने से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं और लगातार अकाली दल की स्थिति मजबूत होती जा रही है।

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डा. महिद्र रिणवा 1992 का चुनाव लड़ने से पहले फाजिल्का के सिविल अस्पताल में बतौर डाक्टर के रूप में सेवाएं दे रहे थे। इसके बाद उन्होंने साल 1992 में आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और भाजपा के उम्मीदवार सोहन लाल को हराकर जीत हासिल की। हालांकि इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन साल 1997 के चुनाव में कांग्रेस के पद पर टिकट मांगने पर उन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिली, जिसके बाद उन्होंने पार्टी को छोड़ते हुए एक बार फिर से आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि वह भाजपा के सुरजीत कुमार ज्याणी से हार गए, लेकिन वह ज्याणी के बाद दूसरे स्थान यानि रनरअप के रूप में रहे। कांग्रेस को 1997 में एक बार फिर से मिली हार के चलते साल 2001 में कांग्रेस ने ना केवल डा. महिद्र रिणवा को एक बार फिर से पार्टी में शामिल किया, बल्कि उन्होंने 2002 के चुनाव के लिए टिकट भी थमाई। पार्टी हाईकमान की आशाओं पर खरा उतरते हुए डा. महिद्र रिणवा ने भाजपा के सुरजीत ज्याणी को हराकर जीत हासिल की। साल 2007 में हुए चुनाव में कांग्रेस की टिकट फिर से मिली, लेकिन इस बार भाजपा के सुरजीत ज्याणी ने उन्हें एक बार फिर से हराया। इसके बाद साल 2012 में भी वह कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। साल 2017 में भी डा. रिणवा ने कांग्रेस से टिकट की मांग की, लेकिन कांग्रेस ने इस बार टिकट युवा दविद्र सिंह घुबाया को सौंपी, जिन्होंने भाजपा के सुरजीत ज्याणी को हराकर जीत हासिल की। तभी से डा. रिणवा पार्टी की गतिविधियों से दूर चल रहे थे।

जाट बिरादरी में है डा. रिणवा की पैठ

वैसे तो फाजिल्का से जब डा. महिद्र रिणवा ने चुनाव लड़ा है, उन्हें फाजिल्का वासियों का स्नेह मिला। लेकिन जाट बिरादरी से संबंधित होने के चलते उन्हें हमेशा ही उनका समर्थन मिला, जो भी चुनाव उन्होंने लड़ा, भले ही वह जीतें हो या हारें हों, उनकी वोट प्रतिशत सदैव ही विजेता उम्मीदवार के नजदीक रही है। ऐसे में पूर्व मंत्री जोसन के बाद डा. महिद्र रिणवा के शिअद में चले जाने से शिअद फाजिल्का जिले में मजबूत नजर आ रही है।

टिकट को लेकर होगी माथापच्ची

जिला फाजिल्का से पिछले एक माह में दो कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर शिअद में शामिल हो गए हैं। लेकिन अब पार्टी को विधानसभा हलकों से टिकट को लेकर माथापच्ची करनी होगी। क्योंकि जलालाबाद से सुखबीर सिंह बादल पहले ही अपने आप को उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं, जबकि बीते दिनों हंसराज जोसन की पीठ थपथाते हुए उन्होंने इशारों में कहा कि पार्टी जल्द उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी डालेगी। वहीं डा. महिद्र रिणवा के अब शिअद में आने से अगर पार्टी इन दोनों को टिकट थमाने पर विचार करती है, तो इस बात को लेकर माथापच्ची करनी पड़ेगी कि किसको किस विधानसभा से टिकट दे।


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