स्कूल बंद होने के चलते मंदी की मार झेल रहे बुक्स विक्रेता
कोरोना ने सबसे बड़ी मार अर्थव्यवस्था व बचों की पढ़ाई पर की है।
मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का :
कोरोना ने सबसे बड़ी मार अर्थव्यवस्था व बच्चों की पढ़ाई पर की है। भले ही अब लॉकडाउन 5 यानि अनलॉक-1 में कई तरह की रियायतें मिल गई हैं और कारोबार एक बार फिर से पटरी पर आ रहा है। लेकिन अभी तक बच्चो की पढ़ाई पूरी तरह से पटरी पर नहीं आई। भले ही ऑनलाइन क्लासें कुछ हद तक बच्चों को पढ़ाई के साथ जोड़ रही हैं, लेकिन स्कूल व कॉलेज बंद होने के कारण जहां बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। वहीं इनसे जुड़ा बुक्स व्यापार भी अभी तक पटरी पर नहीं लौटा। पिछले साल की तुलना में अभी तक केवल 10 प्रतिशत कार्य ही निकला है, जबकि स्कूल बंद होने से कापियों व अन्य स्टेशनरी की मांग बहुत ही कम है। जिस कारण बाजारों से कापियां व अन्य स्टेशनरी खरीदने वाला ग्राहक गायब है।
साइकिल बाजार में स्थित युनिवर्सल बुक सेंटर के संचालक वरिद्र सेठी ने बताया कि किताबों की दुकानों पर सबसे ज्यादा बिक्री मार्च माह में होती है। क्योंकि इस दौरान प्राइवेट स्कूलों में दाखिले होते है और बच्चे किताबें व कापियां खरीदते हैं। लेकिन इस साल कोरोना के चलते लॉकडाउन लगाया गया है। जिसके चलते मार्च व अप्रैल में दुकानें बंद रही। हालांकि अब दुकाने खुलने लगी है, लेकिन किताबों का दुकानों पर किताबें व कापियां खरीदने के लिए ग्राहक नहीं आ रहे। उन्होंने बताया कि उनके पास ज्यादातर ग्राहक फोटो स्टेट करवाने के लिए ही आ रहे हैं। जबकि पिछले साल की तुलना में इस बार कापियों की खरीद 100 में से 20 प्रतिशत ही हुई है। सात विषयों का कार्य हो रहा दो कापियों में
दुकानों पर ग्राहक न आने का सबसे बड़ा कारण यह है कि पहले स्कूल लगने पर अध्यापकों द्वारा हर विषय की अलग कापी बनाने के लिए कहा जाता था, लेकिन ऑनलाइन क्लासिस में भले ही रोजाना स्कूलों द्वारा कार्य दिया जा रहा है। लेकिन बच्चे सात से आठ विषयों का काम दो से तीन कापियों में ही कर रहे हैं, जिससे लगातार कापियों की सेल कम हो रही है।
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नई किताबों की डिमांड भी नहीं
बुक्स सेंटर के संचालक सुनील ने बताया कि मार्च व अप्रैल माह में नतीजे आने के बाद बच्चे अपनी पुरानी किताबें उनके पास बेच देते थे, जिन्हें वह आगे बच्चों को बेच देते थे। लेकिन इस बार कर्फ्यू के चलते दुकानें बंद रही और बच्चों व उनके अभिभावकों ने भी अपने आसपास रहने वाले बच्चों से पुरानी पुस्तकें ले ली। जिसके चलते बाजार में पुरानी पुस्तकें आई ही नहीं। वहीं अभी तक स्कूल बंद होने के कारण नई पुस्तकों की डिमांड भी कम है।