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विरोधी पार्टियों के प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर देंगे मक्खन

संयुक्त संघर्ष पार्टी के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आज पंजाब विधानसभा के लिए पार्टी को मिली 10 सीटों में से नौ पर उम्मीदवारों का ऐलान किया गया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 07:26 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 07:26 AM (IST)
विरोधी पार्टियों के प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर देंगे मक्खन
विरोधी पार्टियों के प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर देंगे मक्खन

परमिदर बख्शी, दीपक सूद, फतेहगढ़ साहिब

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संयुक्त संघर्ष पार्टी के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आज पंजाब विधानसभा के लिए पार्टी को मिली 10 सीटों में से नौ पर उम्मीदवारों का ऐलान किया गया। इनमें हलका फतेहगढ़ साहिब से सर्बजीत सिंह मक्खन को उम्मीदवार घोषित किया गया है। मक्खन लंबे समय से राजनीतिक पार्टियों में रहे हैं। र्टीयों में रहें हैं और जब कृषि कानून पास हुए तो उस समय से ही मक्खन अपना योगदान देते रहें हैं।

2012 में मनप्रीत बादल ने अपनी पीपल्स पार्टी आफ पंजाब बनाई थी। मक्खन हलका फतेहगढ़ साहिब से मजबूत दावेदार थे। उस दौरान शिअद से टिकट नहीं मिलने पर उस समय के विधायक दीदार सिंह भट्टी शिअद को छोड़कर पीपल्स पार्टी आफ पंजाब में शामिल हो गए थे। तब मक्खन ने ऐन मौके पर अपनी टिकट भट्टी को दे दी थी। बाद में जब मनप्रीत बादल ने कांग्रेस ज्वाइन की तो मक्खन भी कांग्रेस में आ गए थे। 2017 में पंजाब में कांग्रेस सरकार आने के बाद हलका फतेहगढ़ साहिब के विधायक कुलजीत सिंह नागरा से उनकी ज्यादा नहीं बनी। इस कारण वह कांग्रेस के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते थे। जब से तीन कृषि कानूनों को लेकर संघर्ष शुरू हुआ वह किसानों के बीच जा रहे थे।

जब पीपल्स पार्टी आफ पंजाब ने कांग्रेस में मर्ज कर दिया था तो उस समय सर्बजीत सिंह मक्खन को कांग्रेस का पंजाब का सचिव लगाया गया था। अच्छा रुतबा व तेजतर्रार नेता होने के कारण मक्खन को लोग पसंद भी करते हैं। यही कारण है कि 2012 में हलका फतेहगढ़ साहिब से ही पीपीपी को पंजाब में सबसे अधिक 32,200 वोट पड़े थे। लेकिन अब खुद उम्मीदवार होने के कारण वह कांग्रेस व अन्य के लिए चुनौती बन सकते हैं। सर्बजीत सिंह मक्खन का राजनीतिक करियर

2003 में गांव मलकपुर के सरपंच से राजनीतिक करियर शुरू किया था। 2008 में मक्खन की पत्नी सर्बजीत कौर ने जिला परिषद का चुनाव जीता। 2008 से लेकर 2011 तक पंचायत एसोसिएशन पंजाब के अध्यक्ष रहे। 2008 में मार्केट कमेटी सरहिद के चेयरमैन बने, लेकिन जब मनप्रीत सिंह बादल ने पीपीपी बनाई तो उन्होंने त्याग पत्र दे दिया और पार्टी के संस्थापक सदस्य बने। 27 मार्च 2011 को पीपीपी रजिस्टर्ड होने के बाद वह पार्टी के वरिष्ठ उप प्रधान बने। बाद में पीपीपी कांग्रेस में मर्ज हो गई। जब कृषि कानून पास हुए तो उस समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी।


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