आनलाइन रजिस्ट्रेशन वाले ही कर सकेंगे माता चक्रेश्वरी देवी के दर्शन, वार्षिक समारोह आज से
फतेहगढ़ साहिब जैनियों की श्रद्धा का केंद्र खंडेलवाल जैनियों की कुल देवी माता श्री चक्रेश्वरी देवी के दर्शन केवल आनलाइज रजिस्ट्रेशन कराने वाले श्रद्धालु ही कर सकेंगे।
धरमिदर सिंह, फतेहगढ़ साहिब
जैनियों की श्रद्धा का केंद्र खंडेलवाल जैनियों की कुल देवी माता श्री चक्रेश्वरी देवी के दर्शन केवल आनलाइज रजिस्ट्रेशन कराने वाले श्रद्धालु ही कर सकेंगे। फतेहगढ़ साहिब के अत्तेवाली में स्थित मंदिर में वीरवार को शुरू हो रहे तीन दिवसीय वार्षिक समारोह में इस बार कोरोना के चलते न तो समूहिक पूजा होगी और न ही शोभायात्रा, जागरण, मुंडन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। बीस श्रद्धालु एक बार में मंदिर के अंदर जाकर माता के दर्शन करेंगे और माथा टेकने के तुरंत बाद बाहर आएंगे। मंदिर में प्रवेश से पहले प्रत्येक श्रद्धालु के शरीर का तापमान देखा जाएगा और मास्क लगाकर ही सभी प्रवेश करेंगे। किसी भी श्रद्धालु को सराय में ठहराया नहीं जाएगा और न ही मंदिर में किसी प्रकार का लंगर लगेगा। जबकि, कोरोना से पहले तीन दिनों तक मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती थी। देश भर से श्रद्धालु यहां आते थे। मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूरी कर बच्चों के मुंडन व नामकरण आदि करवाने के लिए यहां पहुंचते हैं। जैन समुदाय में मान्यता है कि जो कोई भी माता के दरबार में सच्चे मन से पुत्र प्राप्ति की कामना करता है, मां उसकी कामना अवश्य पूरी करती है। यह मंदिर पुत्र रत्न प्राप्ति के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में बना माता रानी का अमृत कुंड भी माता का ही चमत्कार है। अष्टभुजाओं वाली माता चक्रेश्वरी देवी अपनी दाहिनी चार भुजाओं में वाहन, बाण, च्रक तथा वात्सल्यनमी आशीष तथा बाई भुजाओं में धनुष, वज्र, चक्र व अंकुश धारण किए हुए हैं। दोनों हाथों में चक्र होने के कारण ही माता का नाम चक्रेश्वरी देवी पड़ा। दशहरे के तीन दिनों बाद आने वाले वार्षिक उत्सव में भारत के विभिन्न प्रदेशों से हर वर्ष भारी संख्या में जैनी माता के दरबार में अपना शीश झुकाने पहुंचते हैं।
बताया जाता है कि महाराजा पृथ्वी राज चौहान के शासनकाल में एक यात्री संघ महम से कांगड़ा तीर्थ की यात्रा पर निकला था। आज का सरहिद तब सींहनद था। यहां पहुंचकर यह संघ तीन दिन के लिए रुका था। संघ के साथ एक बैलगाड़ी में प्रभु आदिनाथ की अधिष्ठायत्री माता चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा लेकर चल रहे थे। लेकिन मंदिर वाले स्थान पर पहुंच लाख प्रयास करने के बावजूद बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी। जब भक्तजनों ने प्रार्थना की तो आकाश में एक ज्योति पुंज दिखाई दिया और आकाशवाणी हुई कि यह मेरा स्थान है। मैंने यहीं पर निवास करना है। इस पर सबने मिट्टी के एक छोटे भवन का निर्माण किया था, जिसमें माता की वह प्रतिमा स्थापित कर दी गई थी। यात्रियों में अधिकांश खंडेलवाल जैन ही थे।