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युवा दुकानदार ने बनाया कमाल का बेहद सस्‍ता वेंटिलेटर, कोरोना मरीजों का इलाज होगा आसान

पंजाब के कोटकपूरा के एक युवा दुकानदार ने बेहद सस्‍ता वे‍ंटिलेटर बनाया है। बाबा फरीद हेल्‍थ साइंस विश्‍व‍विद्यालय ने इसे मंजूरी दे दी है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2020 10:13 AM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2020 06:47 PM (IST)
युवा दुकानदार ने बनाया कमाल का बेहद सस्‍ता वेंटिलेटर, कोरोना मरीजों का इलाज होगा आसान
युवा दुकानदार ने बनाया कमाल का बेहद सस्‍ता वेंटिलेटर, कोरोना मरीजों का इलाज होगा आसान

फरीदकोट, [एलेक्स डिसूजा]। कोरोना वायरस से गंभीर रूप से पीडि़त मरीजों के लिए वेंटिलेटर की बहुत जरूरत होती है। ऐसे में कोटकपूरा शहर के एक युवा दुकानदार ने पहल की और कमाल का सस्‍ता वेंटिलेटर बनाया है। इस पर महज 40 हजार रुपये की लागत आई है। वेंटिलेटर को बाबा फरीद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. राज बहादुर ने कोरोना मरीजों के अनुकूल बताया है। यूनिवर्सिटी ने इसे बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस वेंटिलेटर नाम दिया है। 

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वेंटिलेटर को बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस वेंटिलेटर नाम दिया

मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में वेंटिलेटर देखने पहुंचे वाइस चांसलर डॉ. राज बहादुर ने बताया कि यह वेंटिलेटर एम्बू बैग की तर्ज पर बनाया गया है। एम्बू बैग एक व्यक्ति हाथों से चलाता है, इसलिए कोई भी व्यक्ति ज्यादा देर तक नहीं चला सकता। एनस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर गुरप्रीत सिंह के सहयोग से कोटकपूरा के दुकानदार रतन अग्रवाल ने आपातकाल में इस्तेमाल करने के लिए अपने मैकेनिकल तजुर्बे से इस वेंटिलेटर को तैयार किया है।

दुकानदार का दावा-40 हजार लागत आई, रोजाना एक बना सकते हैं

ऑटोमेटिक वेंटिलेटर करीब 10 लाख, ट्रांसपोर्ट वेंटिलेटर सात लाख व अन्य वेंटिलेटर दो लाख रुपये में तैयार होता है। रतन अग्रवाल ने 40 हजार रुपये में ही वेंटिलेटर बनाया है। अग्रवाल ने बताया कि कोविड-19 का बढ़ता प्रकोप देखते हुए वाइस चांसलर से बात कर वेंटिलेटर बनाना शुरू किया। इसमें प्रोफेसर गुरप्रीत सिंह ने मदद की।

उन्‍होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण सामान एकत्रित करने में थोड़ी मुश्किलें भी आईं। वेंटिलेटर बनाने में करीब 40 हजार रुपये खर्च हुए। वह इसे मानवता की भलाई के लिए बीएफयूएचएस के अंतर्गत चल रहे सभी अस्पतालों में भेंट करना चाहते हैं। वह ऐसा वेंटिलेटर एक दिन में एक बना सकते हैं।

आठवीं तक ही पढ़ सके, मैकेनिकल तजुर्बे से बनाया

अग्रवाल ने बताया कि बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया। इस कारण आठवीं के बाद नहीं पढ़ पाया। परिवार के भरण-पोषण के लिए दुकान संभालनी पड़ी। वह कुछ न कुछ बनाते रहते थे। वेंटिलेटर बनाने के लिए अपनी एग्रीकल्चरल की दुकान से सामान लिया।

उन्‍होंने बताया कि कुछ समान मिस्त्रियों से बनवाया और कुछ लुधियाना व कुरुक्षेत्र से एकत्र किया। वाइस चांसलर की सिफारिश पर डीसी कुमार सौरभ राज से कफ्र्यू पास मिला था। फिर मैकेनिकल तजुर्बे से वेंटिलेटर तैयार कर दिया। उन्होंने यह वेंटिलेटर देशवासियों की जान बचाने के लिए बनाया है।

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