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जैतो अस्पताल में राजनेता तो आते रहे पर डॉक्टर नहीं आए

जैतो शहर समेत इसके आसपास के करीब 45 गांवों से संबंधित करीब एक लाख आबादी को सरकारी सेहत सेवाओं के लिए सेठ रामनाथ सिविल अस्पताल में लंबे समय से डॉक्टरों समेत अन्य सेहत कर्मियों व सुविधाओं का अभाव है। चुनाव के समय लोगों से बड़े-बड़े वादे करने वाले नेताओं ने कभी भी इस अस्पताल की सुध लेने की जरूरत नहीं समझी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 11:18 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 06:20 AM (IST)
जैतो अस्पताल में राजनेता तो आते रहे पर डॉक्टर नहीं आए
जैतो अस्पताल में राजनेता तो आते रहे पर डॉक्टर नहीं आए

संवाद सहयोगी, जैतो

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जैतो शहर समेत इसके आसपास के करीब 45 गांवों से संबंधित करीब एक लाख आबादी को सरकारी सेहत सेवाओं के लिए सेठ रामनाथ सिविल अस्पताल में लंबे समय से डॉक्टरों समेत अन्य सेहत कर्मियों व सुविधाओं का अभाव है।

चुनाव के समय लोगों से बड़े-बड़े वादे करने वाले नेताओं ने कभी भी इस अस्पताल की सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। पिछले दो साल से जैतो में कांग्रेस की तरफ से बतौर हलका इंचार्ज सेवाएं निभा रहे और लोकसभा चुनाव में फरीदकोट सीट से कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व विधायक मोहम्मद सदीक भी राज्य में अपनी सरकार से अस्पताल के लिए कुछ नहीं करवा पाए। इस अस्पताल के हालात ऐसे है कि शाम पांच बजे के बाद यहां पर आपातकालीन सेवाएं भी बंद कर दी जाती हैं। ऐसे में अगर कोई दुर्घटना होती है या किसी को अचानक कोई सेहत संबंधी तकलीफ हो जाए है, तो यहां पर उन्हें प्राथमिक सहायता नसीब नहीं होती और मरीज को अस्पताल के गेट से ही बठिडा या फरीदकोट भेज दिया जाता है।

गौरतलब है कि सिविल अस्पताल में नियम के मुताबिक सात डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन वर्तमान समय में यहां पर सिर्फ दो ही डॉक्टर मौजूद हैं, जबकि बाकी सभी विभाग खाली पड़े है। अस्पताल के ऐसे हालात के चलते एक बार यहां पर अस्पताल प्रशासन ने लिखित सूचना भी लिखकर लगा दी थी कि इस अस्पतल मे डॉक्टर ना होने की वजह से आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध नहीं है। हालांकि मीडिया में संज्ञान में आने के बाद इसे उतार दिया गया था।

गरीब लोगों को निजी अस्पताल में करवाना पड़ रहा इलाज

अस्पताल में सुविधा न होने के कारण इलाके के लोग काफी निराश हैं। खासकर गरीब वर्ग के लोगों को सरकारी सेहत सेवाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा और वह इलाज के लिए निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर हैं। शहरवासियों का मानना है कि जरा सी चोट वाले मरीजों को भी अस्पताल में दाखिल नहीं किया जाता और उन्हें फरीदकोट रेफर कर दिया जाता है। आसपास के गांवों से इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीज डॉक्टर ना मिलने के कारण अक्सर ही निराश लौटते हैं। सरकार द्वारा करोड़ों रुपये लगाकर लोगो को सहूलियतों के लिए सरकारी अस्पताल जरूर बनाए हैं, लेकिन इनकी तरफ कभी भी ध्यान नहीं दिया जाता।

लोगों में रोष है कि जैतो अस्पताल में ना तो स्टाफ पूरा है और न ही डॉक्टर जिसके चलते यह सफेद हाथी साबित हो रहा है और मरीज प्राइवेट अस्पतालों में लूट का शिकार हो रहे हैं।

दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को दूसरे अस्पताल किया जाता है रेफर

समाजसेवी संस्थाओं का कहना है कि किसी दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को अस्पताल लेकर पहुंचने पर उन्हें हर बार डॉक्टर नहीं होने के चलते दूसरे अस्पताल भेज दिया जाता है। बाकी अस्पताल 40-40 किलोमीटर दूर हैं जिसके चलते कई बार मरीज को जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है। हालांकि एसएमओ डॉ. चंद्र प्रकाश का कहना है कि स्टाफ के अभाव से सेवाएं प्रभावित होना स्वाभाविक है लेकिन फिर भी हमारा प्रयास रहता है कि अस्पताल में पहुंचने वाले मरीज को बेहतर सेवाएं मिलें।


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