व्यवसायिक खेती के लिए किसानों को माहौल नहीं दे पाई सरकार
नेताओं की इच्छाशक्ति और सरकारों द्वारा किसानों को बेहतर विकल्प न मुहैया करवाए जाने का दुष्परिणाम किसान परंपरागत खेती के मकड़जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे है।

प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट
राजनीतिक नेताओं की इच्छाशक्ति और सरकारों द्वारा किसानों को बेहतर विकल्प न मुहैया करवाए जाने का दुष्परिणाम किसान परंपरागत खेती के मकड़जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे है। उद्योग विहीन फरीदकोट जिले में लोगों के रोजगार का एक और बड़ा जरिया कृषि ही है, और किसानों के पास परंपरागत कृषि के अलावा व्यवसायिक कृषि का ठोस विकल्प नजर नहीं आ रहा है, किसानों की बेहतरी के लिए राजनेताओं द्वारा समय-समय पर दावे तो किए जा रहे हैं, परंतु उन दावों में कितनी सच्चाई है, यह राजनीतिक दलों के और सरकारी मशीनरी ज्यादा बेहतर समझती है।
फरीदकोट जिले में कृषि क्षेत्र का कुल रकबा सवा लाख हेक्टेयर के लगभग है। आलम यह कि वर्तमान समय में एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की बिजाई किसानों द्वारा की गई है, और इससे गेहूं का कुल उत्पादन पौने साल लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है। इतनी ज्यादा गेहूं की खपत जिले के लोगों की जरूरत नहीं है, जिससे किसानों को उनकी गेहूं की फसल का सरकारी मूल्य से ज्यादा भाव मिल सके। जरूरत है तेलहन और दलहन की खेती की। हालत यह है कि इसकी खेती के लिए न तो प्रदेश सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही और ना ही कृषि विभाग।
प्रगतिशील किसान जसविदर सिंह बताते हैं कि हम लोग व्यवसायिक खेती करना चाहते हैं, परंतु उसके लिए आज तक फरीदकोट जिले में सत्तासीन सरकारों द्वारा न तो ऐसी मंडी उपलब्ध करवाई गई है, जहां से किसानों को उनकी फसल का वाजिब रेट मिल सके। हम लोग सब्जियों में आलू, हरी मटर, मिर्ची, गाजर, गोभी आदि की खेती करने के अलावा फलों में कीनू, माल्टा, अमरूद, नींबू आदि की खेती करते है, परंतु इनके भंडरण के लिए जिले में कहीं भी कोई ऐसा केन्द्र नहीं बनाया गया है, जहां पर किसान फसल को स्टोर कर सकें। इसके साथ ही सरकार किसानों को तेलहन और दलहन की खेती के लिए भी प्रोत्साहित नहीं करती।
स्थिति यह है कि जो उत्पादन करते हैं सीजन में उसके उतने रेट नहीं मिल पाते, जिससे उन लोगों को फायदा हो सके, ऐसे में न चाहते हुए भी वह लोग सस्ते दर फसल बेचने को मजबूर होते हैं, जबकि उनकी फसलों को व्यापारी सस्ते में खरीदकर स्टोरेज कर मनमाफिक रेट पर बेचते हैं, ऐसे में सरकारें केवल भाषणों में किसानों की बेहतरी और परंपरागत खेती से बाहर निकलने की बात करती है, जबकि जमीनी स्तर पर वह किसानों की बेहतरी के लिए काम करती हुई नहीं दिखाई दे रही है, जब तक किसानों की बेहतरी के लिए सरकारें गंभीर होकर काम नहीं करेगी तक तब किसानों को उनकी फसल का वाजिब रेट नहीं मिल पाएगा और वह परपरांगत फसलों के मकड़जाल से बाहर भी नहीं निकल पाएंगे।
Edited By Jagran