मेडिकल कालेज की अपग्रेडेशन के लिए नहीं मिला फंड
पांच दशक पहले गुरुगोबिंद सिंह मेडिकल कालेज व अस्पताल का नींव पत्थर तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा रखा गया था।
प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट : पांच दशक पहले गुरुगोबिंद सिंह मेडिकल कालेज व अस्पताल का नींव पत्थर तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा रखा गया था। यह मेडिकल कालेज व अस्पताल पंजाब के मालवा में रहने वाले लाखों लोगों के लिए जितना उपयोगी है, उतना ही पड़ोसी राज्य राजस्थान व हरियाणा के लोगों के लिए भी। 1973 में बने इस मेडिकल कालेज व अस्पताल की इमारत व संसाधनों के अपग्रेडेशन के लिए फंड की जरूरत पिछले कई साल से महसूस की जा रही है, जिससे यह अपने उद्देश्यों को पूरा कर सके। मगर प्रदेश सरकार द्वारा इसके अपग्रेडेशन के लिए फंड मुहैया नहीं करवाया जा रहा है। हालांकि शिअद-भाजपा गठबंधन सरकार के कार्यकाल में राज्य सरकार की तरफ से कैंसर समेत अस्पताल के कुछ अन्य विभागों के लिए फंड मुहैया करवाया गया था। सेहत के लिहाज से बढ़ती समस्याओं व जटिलताओं को देखते हुए मेडिकल कालेज के अपेग्रेडेशन पर कम से कम डेढ़ सौ करोड़ रुपये की जरूरत है। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डा. राज बहादुर व अन्य अधिकारियों को मानना है कि यदि मेडिकल कालेज व अस्पताल को मार्डन रूप देने और विशेषज्ञ डाक्टरों की यहां उपलब्धता के लिए भारी भरकम फंड की जरूरत है। अन्यथा थोड़े-बहुत फंड से तो काम चलाऊ काम ही होगा।
अस्पताल में अनुभवी डाक्टरों व संसाधनों की जरूरत
यहां पर औसतन रोजाना 15000 मरीज व उनके रिश्तेदार आते है। इसमें हरियाणा व राजस्थान से आने वाले मरीजों व उनके रिश्तेदारों की तादात चार से पांच हजार होती है। ऐसे में यहां पर उन सभी सुविधाओं की जरूरत है, जोकि पीजीआई चंडीगढ़ में उपलब्ध है, ताकि यह अस्पताल गंभीर रोगों को उपचार कर सके। मेडिकल कालेज व अस्पताल में नए कोर्स के साथ ही नए विग शुरू किए जाने की जरूरत है। यहीं नहीं अच्छे डाक्टर यहां पर कार्य कर सके, इसके लिए अच्छा परिवेश व पैकेज की जरूरत है, जोकि बिना भारी-भरकम फंड के संभव नहीं है। आलम यह है कि धन के अभाव में मेडिकल कालेज व अस्पताल अपने लिए एक स्टेडियम तक नहीं बना सका और नहीं कोई गेस्ट हाउस है। इसके अलावा डाक्टरों को वेतन के रूप में कम पैकेज मिलने के कारण यहां के विभिन्न विभागों में हमेशा ही अनुभवी डाक्टरों की कमी रहती है। कुछ अनुभवी डाक्टर है, उनके ऊपर प्रबंधन मजबूरी बस दबाव भी नहीं बना पाता। अन्यथा कहीं वह भी यहां से नौकरी छोड़कर कहीं और न चले जाएं।