चरित्र वह पूंजी है जो एक बार खो जाए तो वापस नहीं मिलता : रितु भारती
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा कोटकपूरा के अमन नगर में स्थित स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग करवाया गया।
संवाद सहयागी, कोटकपूरा
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से कोटकपूरा के अमन नगर में स्थित स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया।
इस सत्संग समागम दौरान श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रितु भारती ने कहा कि चरित्र मनुष्य की वह पूंजी है जो एक बार खो जाए तो पुन: प्राप्त नहीं हो सकती। हमारे संत महापुरुष कहते हैं चरित्र की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है। चरित्र हमारे जीवन का सबसे अनमोल रत्न है जो हमें सफलता की ऊंचाइयों या पतन की खाइयों में धकेलता है। यदि वह श्रेष्ठ होता है तो सफलता हमारे कदम चूमती है और यदि वह निकृष्ट होता है तो हम जीवन की बाजी हारकर जाते हैं।
अब्राहम लिकन से जब एक बार पूछा गया कि मानव का सबसे बड़ा गुण क्या है, तब उन्होंने स्पष्ट एवं बुलंद वाणी में कहा, मानव का सबसे बड़ा गुण सच्चरित्रता अर्थात सुंदर चरित्र है। परंतु आज इंसान की हालत को देखकर लगता है कि जैसे उसका यह सर्वश्रेष्ठ गुण कहीं लुप्त होता जा रहा है। ईश्वर का अंश होते हुए भी वह निर्मलता पावनता आदि ईश्वरीय गुणों से विहीन नजर आता है। इसका एकमात्र कारण यही है कि आज वह अपनी इच्छाओं एवं कामनाओं के वशीभूत हो गया है। ऐशो आराम की तृष्णा में कितनी बार उसका चरित्र जलकर स्वाह हो गया है।
हमारे महापुरुष कहते हैं कि ब्रह्मज्ञान द्वारा एक सुंदर चरित्र का निर्माण किया जा सकता है। हमारे शास्त्र कहते हैं पहले जागरण फिर सदाचार अर्थात जागरण की नींद पर ही सुंदर आचरण की दीवार का निर्माण संभव है। जागरण का भाव परमात्मा का साक्षात्कार करना है। अपने भीतर ही ईश्वर का दर्शन करना जो कि एक पूर्ण गुरु की कृपा से ही संभव है। ब्रह्मज्ञान की साधना सुमिरन कर मनुष्य अपने बुरे विचार, बुरे संस्कार को खत्म कर एक सुंदर चरित्र का निर्माण करता है। इसलिए जरूरत है पूर्ण गुरु की शरणागत होकर और ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर ईश्वरीय सत्ता को जानने की।