क्या अन्न के कटोरे में फलते-फूलते कृषि घोटाले के बीज बोने वाले असल कसूरवार बेनकाब हो पाएंगे?
पहले हुए कृषि घोटालों की तरह इस घोटाले की जड़ों तक भी कोई आंच नहीं पहुंच पाएगी और किसान इसी तरह छले जाएंगे?
पंजाब, विजय गुप्ता। भारत के अन्न के कटोरे यानी पंजाब में एक बार फिर कृषि क्षेत्र में घोटाला सामने आया है। यह बीज घोटाला सियासी गुल खिलाने लगा है जिससे कैप्टन सरकार असहज हो चली है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस घोटाले के बीज बोने वाले असल कसूरवार बेनकाब हो पाएंगे? या फिर पहले हुए कृषि घोटालों की तरह इस घोटाले की जड़ों तक भी कोई आंच नहीं पहुंच पाएगी और किसान इसी तरह छले जाएंगे?
इस घोटाले में कृषि विभाग के अफसरों, सरकार एवं उसके एक मंत्री ही नहीं, प्रतिष्ठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं। दरअसल धान की जिन किस्मों के बीज उसने परीक्षण के लिए तैयार किए थे, उन्हें कुछ बेईमान व्यापारियों ने बेहद महंगे दामों पर किसानों को बेच डाला। जिस एजेंसी वाले को इसे बेचने के आरोप में पकड़ा गया है उसके पिता कभी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सीड फार्म में टेस्टिंग इंस्पेक्टर थे। किसानों को ट्रायल के लिए जो बीज दिया गया, उसे बीज की किस्म बताकर किसानों को बेचने का यह घोटाला हुआ है। अकाली दल ने यह मुद्दा उछाल दिया है। कृषि महकमा खुद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के तहत होने के कारण इसे मजबूरी कहें या भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के नारे पर अमल का प्रयास कि सरकार को कुछ कदम उठाने ही पड़े हैं।
शिरोमणि अकाली दल को भी यह नहीं भूलना होगा कि उसकी सरकार के समय में भी ऐसे घोटाले हुए हैं, लेकिन कोई जांच ठोस अंजाम तक नहीं पहुंच सकी। किसी भी बड़े नेता पर कार्रवाई होना तो दूर, उसकी संलिप्तता भी साबित नहीं हो सकी और कार्रवाई के नाम पर केवल अफसरों पर गाज गिरती रही। अकाली सरकार के समय में ही सब्सिडी पर आया गेहूं बाजार में बेच दिया गया था। सड़क से लेकर विधानसभा सदन तक खूब हल्ला मचा तो विधानसभा की कमेटी को जांच सौंपी गई। इससे पूर्व कि कमेटी रिपोर्ट देती, विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो गया और घोटाले की जांच पर भी मिट्टी डल गई। अकाली-भाजपा सरकार को इन घोटालों पर कांग्रेस खूब घेरती रही, किसानों के आक्रोश को खूब भुनाती रही। अकाली सरकार की सत्ता से विदाई का एक बड़ा कारण किसानों की नाराजगी भी रही है। अब कांग्रेस सरकार भी कृषि घोटालों को रोक नहीं सकी है।
यह तो जाहिर है कि अफसरों की मिलीभगत के बिना घोटाले हो नहीं सकते, लेकिन अफसरों को शह किसकी होती है, यह भी सभी जानते हैं। इसलिए जब तक बड़ी मछलियां जाल में नहीं आतीं, तब तक अफसरों पर नाम के लिए कार्रवाई होती रहेगी और यह धंधा यूं ही चलता रहेगा। अफसरों का खेल जारी है। इस दौरान अनेक ऐसे मामले सामने आए हैं जिनसे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं, लेकिन अब तक इनकी अनदेखी ही हुई है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल समेत सभी विपक्षी दलों ने ग्राउंड वर्क शुरू कर दिया है तो यह बीज घोटाला उनके हाथ लग गया है।
एक अफसर का निलंबन और तीन गिरफ्तारियों के साथ ही एसआइटी का गठन कर सरकार निष्पक्ष जांच की बात तो कर रही है, पर विपक्ष इसे यहीं छोड़ देने को राजी नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब करते हुए साफ कह दिया है कि जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी। भाजपा भी अब अपने गठबंधन साझीदार के साथ आ गई है तो आम आदमी पार्टी ने भी कैप्टन सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है।
अब देखना यह होगा कि इस घोटाले की जांच किस मुकाम तक पहुंचती है। पहले हुए घोटालों में अगर जांच किसी ठोस नतीजे तक पहुंची होती तो किसानों के साथ बार-बार छल न होता। घोटालों की बहती गंगा में हाथ तो अफसर, व्यापारी एवं नेता धोते रहे हैं, लेकिन भुगतता किसान है। ज्यादातर किसान छोटे यानी दो से ढाई एकड़ जमीन वाले हैं जिन्हें एक बार में चालीस से पचास क्विंटल फसल मिलती है। ऐसे भी किसान हैं जो एक फसल अपने खाने के लिए रखते हैं, दूसरी कमाई के लिए। इसलिए एक फसल खराब होते ही वे बर्बाद हो जाते हैं।
कैप्टन सरकार को यह नहीं भूलना होगा कि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भी किसानों की दुर्दशा को मुद्दा बनाया था। लेकिन किसानों या खेती की दशा लगभग वैसी ही है जैसी अकाली सरकार के समय में थी। अब अगर विपक्ष ऐसे मामलों को भुना ले गया तो किसानों की नाराजगी कैप्टन सरकार को भी मोल लेनी पड़ सकती है। इसलिए किसी को तो उदाहरण स्थापित करना होगा, ताकि पंजाब की किसानी फले-फूले, न कि घोटाले और घोटालेबाज।
[वरिष्ठ समाचार संपादक]