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जब सब कुछ हाई कोर्ट ने ही करना है तो प्रशासन क्या पैसे मांगने के लिए है

चाहे मामला सेक्टर-17 से वेंडर हटाने का हो या लेक को बचाने का।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 08:00 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 08:00 PM (IST)
जब सब कुछ हाई कोर्ट ने ही करना है तो प्रशासन क्या पैसे मांगने के लिए है
जब सब कुछ हाई कोर्ट ने ही करना है तो प्रशासन क्या पैसे मांगने के लिए है

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि चाहे मामला सेक्टर-17 से वेंडर हटाने का हो या लेक को बचाने का। प्रशासन कुछ भी नहीं कर रहा, हाथ पर हाथ धरे बैठा है। सारा का सारा दारोमदार हाई कोर्ट पर है।  हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी सुखना लेक मामले में संज्ञान पर सुनवाई करते हुए की। हाई कोर्ट ने हैरानी जताई कि सुखना के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट फंड जारी करने के लिए तैयार है लेकिन प्रशासन है कि सेंटर द्वारा मांगी गई जानकारी देने में कोताही कर रहा है। केंद्र सरकार ने 10 साल पहले प्रशासन से जानकारी मांगी थी लेकिन वह जानकारी नहीं दी गई। क्या केवल केंद्र फंड जारी करने के लिए और प्रशासन ने कुछ नहीं करना। पिछले दस वर्षो से चल रही थी सुनवाई

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 वीरवार को जस्टिस राजीव शर्मा एवं जस्टिस हरिदर सिंह सिद्धू की खंडपीठ ने मामले के सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले केंद्र सरकार को निर्देश जारी किए कि वर्ष 2006 में चंडीगढ़ प्रशासन ने सुखना लेक को डी-सिल्ट कर इसकी गहराई बढ़ा दी। इसकी कैपेसिटी बढ़ाए जाने की एक पूरी योजना बनाई। इसके लिए केंद्र सरकार को 73.51 करोड़ राशि जारी किए जाने का जो आग्रह किया था, वह केंद्र सरकार जारी करे। हाई कोर्ट ने कहा यह राशि सुखना के वजूद को बचाने के लिए काफी है। हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को कहा कि इस राशि से वह दो तरीके से सुखना लेक से गाद निकाल सकते हैं।  चाहे तो सुखना लेक को बिना खाली किए फेस्ड मेंनर में ड्रेजिग की जा सकती है,  गंगा और नैनीताल की लेक की इसी तरह से सफाई की गई है,  वहीं, चाहे तो लेक के कुछ ब्लॉक्स बनाए जाएं और प्रत्येक ब्लॉक से से पानी निकाल गाद निकालें। हाई कोर्ट ने कहा कि यह चंडीगढ़ प्रशासन पर निर्भर है कि वह इनमें से किस तरीके से गाद निकालता है। 12 साल से किस चीज का इंतजार कर रहे हो

हाई कोर्ट ने प्रशासन को फटकार भी लगाई और कहा कि जब केंद्र पैसे देने को तैयार है तो वह वर्ष 2008 से किस बात का इंतजार कर रहे हैं।  वर्ष 2008 में ही केंद्र ने जब प्रशासन से प्रस्ताव पर जवाब मांगा था तो क्यों नहीं दिया गया। हाई कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2006 में चंडीगढ़ प्रशासन ने सुखना लेक को डी-सिल्ट कर इसकी गहराई बढ़ा दी। इसकी कैपेसिटी बढ़ाए जाने की एक पूरी योजना बना इसके लिए केंद्र सरकार को 73.51 करोड़ राशि जारी किए जाने का जो आग्रह किया था। इस पर कुछ नहीं किया गया। 19.65 लाख क्यूबिक मीटर गाद (सिल्ट) निकाली जानी थी

सुखना लेक को डी-सिल्ट कर इसकी औसत गहराई 3.48 मीटर से बढ़ाकर 4.68 मीटर किए जाने और कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट एक्टिविटी (सीएटी) के लिए एक योजना बनाई गई थी। जिसके तहत सुखना लेक में 19.65 लाख क्यूबिक मीटर गाद (सिल्ट) निकाली जानी थी। मंत्रालय ने इस पर आइआइटी रुड़की और सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलेपमेंट एंड मैनेजमेंट इन दोनों संस्थानों ने दो विशेषज्ञों से उनकी राय मांगी थी। दोनों विशेषज्ञों ने अप्रैल 2007 में लेक का दौरा कर अपनी राय भेजते हुए कहा था कि लेक में पानी की कैपेसिटी बढ़ाई जाए। इसके लिए डी-सिल्ट और अन्य उपायों के लिए 73.51 करोड़ की राशि तय की गई थी। अगस्त 2008 में इसका प्रस्ताव बना चंडीगढ़ प्रशासन के केंद्र सरकार को भेज दिया था। कांसल वासियों का भी सुना पक्ष

कांसल वासियों की ओर से फिर कहा गया कि उनके घर सुखना केचमेंट एरिया में नहीं हैं,  न तो घर कृषि भूमि पर हैं और न ही वन भूमि पर। बावजूद इसके उनके एरिया को बार-बार कैचमेंट एरिया बताया जा रहा है। पंजाब सरकार ने भी अपना पक्ष रखते हुए यही कहा कि उनकी ओर की जमीन कैचमेंट एरिया में नहीं है। 2009 में हाई कोर्ट ने लिया था संज्ञान, जस्टिस राजीव शर्मा ने दो सुनवाई में फैसला रखा सुरक्षित

2009 में सुखना लेक के वजूद पर संकट को लेकर हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए इस मामले में सुनवाई शुरू की थी। पिछले 11 वर्षो से यह मामला हाई कोर्ट में लंबित था।  इसी दौरान वर्ष 2011 में सुखना कैचमेंट एरिया और कांसल में सभी निर्माण कार्यो पर रोक लगा दी गई थी।  सुखना लेक के मामले में आइआइटी रुड़की और अन्य संस्थानों और विशेषज्ञों ने स्टडी कर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।  जस्टिस राजीव शर्मा की खंडपीठ के समक्ष पहली बार यह मामला दिसंबर में सुनवाई के लिए आया था। उन्होंने तभी सा़फ कर दिया था कि अब इस मामले को और लटकाया नहीं जाएगा। बुधवार को जस्टिस राजीव शर्मा ने वर्ष 2009 से लेकर अब तक के सभी आदेशों को स्टडी किया। बुधवार को एक घंटा और वीरवार को दो घंटे मामले की सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को सुनने के बाद उन्होंने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।


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