..1962 में हम हारे जरूर, लेकिन लड़े कमाल के थे
युद्ध की समीक्षा हार-जीत से करता हो लेकिन रणभूमि हमेशा वीरों का सम्मान करती है।
विकास शर्मा, चंडीगढ़ : इतिहास चाहे युद्ध की समीक्षा हार-जीत से करता हो, लेकिन रणभूमि हमेशा वीरों का सम्मान करती है। यह कहना है ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) अक्षय कपिला का। सेक्टर-4 में रहने वाले बिग्रेडियर अक्षय कपिला बताते हैं कि 1961 में उन्होंने कमीशन लेकर बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट 22 माउंटेन रेजिमेंट ज्वाइन की थी। उन्हें सेवन बंगाल माउंट बैटरी के साथ वन सिख की मदद के लिए बुमला भेजा गया था। 23 अक्टूबर को चीन ने त्वांग पर हमला कर दिया, चीन के इस हमले का मुंहतोड़ जवाब आइबी रिज प्लाटून की अगुआई कर सुबेदार जोगिदर सिंह ने दिया, उन्होंने तीन बार चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। सुबह साढ़े चार से शाम साढ़े पांच बजे तक दोनों सेनाओं के बीच में जोरदार युद्ध हुआ, कैप्टन जीएस गोसाल की अगुआई में हमारी प्लाटून भी वहां पहुंच गई थी। बतौर गन पोजिशन ऑफिसर मैंने 2000 के करीब गोले चीनी सेना पर बरसाए। जोगिंदर सिंह को मिला था परमवीर चक्र
एमुनेशन खत्म होने पर चीनी सेना ने सूबेदार जोगिदर सिंह को घायल अवस्था में बंदी बना लिया, इसी दौरान उनकी मौत हो गई। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र मिला। उनके साथ इस युद्ध में शहीद हुए पूर्व ओलंपियन लेफ्टिनेंट कौशिक को वीर चक्र मिला। इस लड़ाई हमारे 32 सैनिक शहीद हुए, जबकि चीन के 320 जवान मरे। खत्म हो गए थे हथियार, अंधेरा होने तक रोक रखे थी चीनी
इसके बाद चीन के साथ हमारी दूसरी लड़ाई थैमबैंग में हुई। 16 नवंबर को हमें सूचना मिली कि साढ़े तीन हजार चीनी सैनिक आ रहे हैं, उन्हें रोकना है। 17 नवंबर को सुबह सात से 12 बजे तक युद्ध हुआ। इस युद्ध में हमारे में चार सैन्य अफसर और 89 जवान शहीद हुए, जबकि चीन के 310 से ज्यादा सैनिक मारे गए। हमारा एमुनेशन खत्म हो गया था, इसलिए मैंने अपने कमांडिग ऑफिसर को बताया कि मैं चीनी सेना को यहीं रोकता हूं, आप बोमडिला पहुंचे। मैं अपने साथियों के शाम साढ़े चार बजे तक रुक-रुककर गोले बरसाता रहा और चीनी सेना को रोके रखा। अंधेरा होने तक हमने ऐसे किया, इसके बाद बोमडिला पहुंच गए। बोमडिला में हुई तीसरी जंग
तीसरी बार चीन से हमारा सामना बोमडिला में हुआ। 17 नवंबर की शाम साढ़े आठ बजे बोमडिला में जंग हुई। इस युद्ध में भी भारतीय सैनिकों ने चीन को कड़ी चुनौती दी, लेकिन एमुनेशन की कमी ने एक बार फिर हमारे वीर सैनिकों को हरा दिया। उस समय चीन से हार के कारण
-बिग्रेडियर अक्षय कपिला बताते हैं कि उस समय चीन के मनसूबों को समझने के लिए हमारी इंटेलिजेंस कमजोर रही।
-इसलिए हारे क्योंकि युद्ध के समय फैसले लेने और युद्ध योजना भी चीन के मुकाबले तत्कालीन सरकार कमजोर दिखी। मौजूदा समय में हम सक्षम
1962 के बाद दोनों देशों ने अपनी सैन्य शक्ति को काफी बढ़ा लिया है। हाईटेक हथियारों के मुकाबले में चीन भारत से आगे है, लेकिन भारत सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है। हम चीन को कड़ी चुनौती देने में सक्षम हैं।