मुनि विनय कुमार आलोक बोले- हमारी सोच और समझ के दायरे सीमित हो गए हैं
मुनि विनयकुमार ने कहा कि जिनके साथ हमारे दिल के रिश्ते होते हैं हम उन्हें छोड़ देते हैं और उन्हें छोड़ने के बाद दर्द ठीक उसी प्रकार होता है जैसे नदी किनारे से टकराने के बाद किनारे टूटने का दर्द भी उसके अंदर होता है।
चंडीगढ़, जेएनएन। हमारी सोच और समझ के दायरे सीमित होकर रह गए हैं। इसे देखकर हमें हैरानी भी है और निराशा भी, क्योंकि हम अपनो का रिश्ता उन्हीं लोगों से रखते हैं जिनके साथ हमारे खून के रिश्ते होते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। यह शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन सेक्टर-24 में आयोजित सभागार में कहे।
उन्होंने कहा कि जिनके साथ हमारे दिल के रिश्ते होते हैं, हम उन्हें छोड़ देते हैं और उन्हें छोड़ने के बाद दर्द ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे नदी से टकराने के बाद नदी को होता है। वह किनारों को छूकर खुश जरूर होती है लेकिन उसके साथ ही किनारे टूटने का दर्द भी उसके अंदर होता है।
मुनि विनय कुमार आलाेक ने कहा कि इस साल एक यात्रा कराने का मुझे भी प्रपोजल आया, जिसमें ऐसे व्यक्ति को बुलाने पर सहमित बनी जिन्हें यात्रा पर जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। उन्हें कहीं भी आना-जाना ठीक नहीं लगता उसके बावजूद हमने उन्हें आमंत्रित किया। वह आए और अपने साथ ऐसी प्रसन्नता लेकर आए जिसने हमें भीतर से प्रेम और स्नेह से सराबोर कर दिया। मुझे लगा यह तो कमाल का प्रयोग है। बेहद सीमित संसाधन और ऊर्जा में इससे बेहतर परिणाम किसी दूसरी चीज से निकलना मुश्किल है. कुल मिलाकर जिंदगी को पहाड़, मचान, ऊंचाई से देखने, समझने की कोशिश करते रहना चाहिए। क्योंकि अकसर एक ही तल से देखने के कारण हम अधिक दूरी और गहराई तक नहीं देख पाते! इसमें उनके लिए जगह बना पाना असल में प्रेम और स्नेह की दुनिया को नया विस्तार देना है जो हमारे लिए कुछ नहीं कर सकते। जो कर सकता है, सब उसकी चिंता में ही जुटे हैं. ऐसे में कितना भला लगता है, समय का छोटा सा टुकड़ा उनके लिए निकालना जिन्होंने 'धूप ' के वक्त बिना शर्त हमें अपनी छांव देने के साथ ही, हमारे होने में अहम भूमिका का निर्वाह किया।