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चंडीगढ़ में वन महोत्सव की शुरुआत, लक्ष्मी तरु, अंजीर, महुआ पौधों की विशेषताएं जान आप हो जाएंगे हैरान

सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ वन महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। यह शुरुआत सेक्टर-35 स्थित सरकारी मॉडल स्कूल के प्रिंसिपल देवेंद्र गोसाईं द्वारा लक्ष्मी तरु का पौधा लगाकर की गई। पौधारोपण कार्यक्रम के दौरान विशेष प्रजाति के पौधे लगाए गए।

By Ankesh ThakurEdited By: Published: Thu, 08 Jul 2021 12:10 PM (IST)Updated: Thu, 08 Jul 2021 12:10 PM (IST)
चंडीगढ़ में वन महोत्सव की शुरुआत, लक्ष्मी तरु, अंजीर, महुआ पौधों की विशेषताएं जान आप हो जाएंगे हैरान
स्कूल में लक्ष्मी तरु का पौधा लगाकर वन महोत्सव की शुरुआत की गई है।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ वन महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। यह शुरुआत सेक्टर-35 स्थित सरकारी मॉडल स्कूल के प्रिंसिपल देवेंद्र गोसाईं द्वारा लक्ष्मी तरु का पौधा लगाकर की गई। इसके साथ ही स्कूल प्रांगण में अंजीर, महुआ, बड़हल (धेहु या टेहु) और महोगनी के आयुर्वेदिक औषधीय गुणों से भरपूर कईं प्रजातियों के पौधे लगाए गए।

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इस वन महोत्सव कार्यक्रम में स्कूल के टीचर्स, स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के सदस्यों और चतुर्थ श्रेणी के सभी कर्मचारियों ने भाग लिया। वन महोत्सव कार्यक्रम में उपस्थित सभी को जागरूक करते हुए स्कूल प्रिंसिपल देवेंद्र गोसाईं ने कहा हमें जब भी समय मिले पौधारोपण कार्यक्रमों में शामिल होना चाहिए, ताकि पर्यावरण को स्वच्छ एवं सुंदर बनाया जा सके। इतना ही नहीं हमें पेड़-पौधों की देखभाल बच्चों की तरह करनी चाहिए। पेड़-पौधे बादलों को आकर्षित करते हैं इसलिए जहां पेड़-पौधे अधिक होते हैं वहां वर्षा भी अधिक होती है।

1960 के दशक में हुई वन महोत्सव की शुरुआत

वहीं स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर कुलदीप मेहरा ने बताया कि वह कईं वर्षों से पौधारोपण करते आ रहें है। अबतक हजारों पौधें लगा चुके हैं। वन महोत्सव भारत सरकार द्वारा पौधारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जाता है। जो 1960 के दशक में पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आंदोलन था। तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने इसका सूत्रपात किया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मानव द्वारा निर्मित वनों का क्षेत्रफल बढ़ाना एवं जनता में पौधारोपण की प्रवृत्ति पैदा करना। इसलिए हमें वन महोत्सव में स्कूल, कॉलेजों, सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों के साथ घर के आंगन में जहाँ भी उचित जगह मिलें वहां पर अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। स्कूल में लक्ष्मी तरु, अंजीर, महुआ, बड़हल (धेहु या टेहु) और मोहगनी के औषधीय गुणों से भरपूर कईं प्रजातियों के पौधे रोपित किए गए।

इन औषधीय पौधों की यह हैं विशेषताएं

लक्ष्मी तरु: यह पौधा मुलत: उत्तरी अमेरिका का पेड़ है। इसके बीजों से खाद्य तेल बनता है। इसे 'स्वर्ग का पेड़' (पैराडाइज ट्री) कहा जाता है। भारत में यह पेड़ सबसे पहले 2006 में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रवि शंकर ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा लगवाया गया था। इस पेड़ के पत्तों से जहां सेकंड स्टेज तक के कैंसर का खात्मा संभव है, वहीं आंखों के रोग, एनीमिया, अंदरूनी फोड़ा, रक्तस्राव, पाचन प्रणाली, गैस एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, डायरिया, कोलाइटिस, चिकन गुनिया, हेपेटाइटिस, मलेरिया, फीवर, मासिक धर्म, सफेद पानी समेत अनेक रोगों को भी बहुत जल्द ठीक करता है। लक्ष्मी तरु पेड़ की कुछ पत्तियां मात्र एक कप पानी में उबाल कर खाली पेट पानी पीना होता है।

अंजीर: ऐसा माना गया है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे पुराने फलों में से एक अंजीर भी है। यह अत्यंत स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर फल होता है जब औरतों में प्रेगनेंसी के दौरान खून की कमी हो जाती है डॉक्टर भी अंजीर खाने का सुझाव देते है क्योंकि अंजीर में विटामिन ए, बी1, बी2, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरिक जैसे कई लाभकारी तत्व पाए जाते हैं। इसे फल और ड्राईफ्रूट दोनों प्रकार से खाया जाता है। यह फल मुख्यतः भारत ओर यदि विश्व की बात करें तो यह प्रमुखतः दक्षिणी तथा पश्चिमी अमरीका और मेडिटेरेनियन तथा उत्तरी अफ्रीकी देशों में उगाया जाता है।

महुआ: महुए का फूल, फल, बीज, छाल, पत्तियाँ सभी का आयुर्वेद में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। महुए का धार्मिक महत्व भी है। रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष है।

बड़हल या बड़हर (धेहु या टेहु): एक फलदार वृक्ष है। इसके फल गोलाकार या बेडौल होते हैं। हरे रंग का कच्चा फल पकने पर पीला हो जाता है जिसे खाया जाता है। यह नेत्र रोग, कर्ण खुजली, ज्वर रोग, मुख्शोधनार्थ, प्रवाहिका, कुष्ट वर्ण घाव, स्वादिष्ट आचार भी बनाया जाता है

 

महोगनी: महोगनी एक औषधीय पौधा है। इसके फल व पत्तों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अस्थमा, सर्दी, मधुमेह सहित अन्य रोगों की दवाएं बनाई जाती हैं। यह पौधा 5 वर्ष में एक बार बीज देता है।

इस वन महोत्सव कार्यक्रम में सरकारी मॉडल स्कूल सेक्टर-35 चंडीगढ़ के प्रिंसिपल देवेंद्र गोसाईं, स्पोर्ट्स टीचर कुलदीप मेहरा, सविता, रीना विज, सुनील ध्यानी, समीर शर्मा, मनु शर्मा, नवप्रीत कौर सहित स्कूल मैनेजमेंट कमेटी से परमिंदर सिंह, योगेश कुमार, विनीत अवस्थी, अश्वनी कुमार, महिंद्र सिंह उपस्थित रहें। इसके साथ ही स्कूल के सभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने भी भाग लिया जिसमें मुख्य रूप से शिवबरन, रामराज, बालेश्वर, सुंदर, संतोष कुमार और रवि कुमार उपस्थित रहे।


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