गांधी स्मारक भवन में 'पहली जंग-ए-आजादी और राव तुलाराम' पुस्तक का विमोचन
37 राजाओं में राव तुलाराम एक ऐसा नाम हैं जोकि अंग्रेजों के खिलाफ खुद लड़ने के साथ-साथ विदेशों से भी समर्थन इकट्ठा कर रहे थे।
जेएनएन, चंडीगढ़। 1857 का विद्रोह जब शुरू हुआ, तो उस समय के इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई का वर्णन ही सामने आता है। यह सही है कि रानी लक्ष्मीबाई ने जबरदस्त जौहर का प्रदर्शन किया था और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों का हिला दिया था, लेकिन उस समय के विद्रोह में हजारों हिंदुस्तानी मारे गए थे, जिनका नाम इतिहास में कहीं भी नहीं मिलता है। उस समय छह सौ के करीब भारतीय राजा थे, जिसमें से मात्र 37 राजाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी और बाकी ने अंग्रेजों का साथ दिया था। यही कारण था कि अंग्रेज भारत में हुकूमत कर गए। उन 37 राजाओं में राव तुलाराम एक ऐसा नाम हैं, जोकि अंग्रेजों के खिलाफ खुद लड़ने के साथ-साथ विदेशों से भी समर्थन इकट्ठा कर रहे थे। उनके बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया ने पहली जंग-ए-आजादी और राव तुलाराम पुस्तक को लिखा है। जिसे रविवार को गांधी स्मारक भवन सेक्टर-16 में लांच किया गया।
इस मौके पर उनके साथ गांधी स्मारक भवन सेक्टर-16 की फैकल्टी मौजूद रही। पुस्तक के बारे में कृष्ण स्वरूप ने कहा कि जब रानी लक्ष्मीबाई शहीद हुई, तो उनके बाद राव तुलाराम ने भारत से निकलकर अफगानिस्तान में प्रवेश किया और वहां से एक ऐसी सेना खड़ी करने का साहस दिखाया, जो अंग्रेजों के लिए बड़ी परेशानी बनी। हालांकि उनका संघर्ष ज्यादा लंबा नहीं चला और किसी बीमारी के कारण देहांत हो गया। जब किसी से नहीं मिला शहीदों से संबंधित जवाब कृष्ण स्वरूप ने कहा कि पुस्तक को लिखने का विचार उस समय आया, जब सिरसा के उच्च विद्यालय में राजनीति पर लेक्चर देने के लिए बुलाया गया। वहां पर जब मैंने 1857 में शहीद हुए नवाब रनिया के बारे में पूछा, तो उसके बारे कोई जवाब नहीं दे सका। उसके बाद भगत सिंह पर सवाल पूछा तो भी उसका कोई उचित जवाब नहीं मिल सका। उसके बाद मैंने सोचा कि हरियाणा के शहीदों पर काम किया जाए और इस पुस्तक को लिखना शुरू किया। इस पुस्तक में राव तुलाराम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है।