इंग्लैंड में भी महकाई है संतूर वादन की खुशबू
संगीत को सरहद पार ले जाना काफी खुशनुमा होता है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : संगीत को सरहद पार ले जाना काफी खुशनुमा होता है। ये आपको नई जगह में पुराने जीवन से जोड़ता है। जहां आपका चैलेंज ये होता है कि आप वहां भी इसे वैसे ही प्रसिद्धि दिलाएं जैसे अपने देश में। इंग्लैंड के संतूर वादक उस्ताद किरणपाल सिंह कुछ इसी अंदाज में अपने संतूर वादन पर बात करते हैं। वीरवार को वह प्राचीन कला केंद्र-35 की 266 वीं मासिक बैठक में प्रस्तुति देने पहुंचे। पिछले 33 वर्षो से इंग्लैंड में रह रहे किरणपाल ने कहा कि भारत में रहने की वजह से संगीत मुझ में आया। बचपन में संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा के साथ सीखने को मिला। जिसने मुझे संगीत से खूबसूरती से जोड़ा। उनके साथ मैंने गुरु शिष्य परंपरा के तहत शिक्षा ली। फिर गुरु रिपुदमन सिंह पलहा और गुरु जगजीत सिंह के साथ भी संतूर की बारीकियां सीखी। बोले कि गुरुओं की संगत में ही संतूर की अंदरूनी खूबसूरती जानने को मिली। जिसने मुझे अंदरूनी रूप से बहुत बदला। पहाड़ी राग की दी खूबसूरत प्रस्तुति
कार्यक्रम की शुरुआत किरणपाल ने राग यमन से की। उन्होंने इसमें रूपक, मध्य लय और द्रुत लय में गतें पेश की। इसके बाद राग में निबद्ध दादरा, तीन ताल मध्य लय और द्रुत लय में गतें और बंदिशें पेश की। इसके बाद कुछ अलग प्रस्तुति देते हुए, उन्होंने संतूर में पहाड़ी राग पर आधारित डोगरी धुन प्रस्तुत की। जिसने माहौल को अलग खुशबू से भर दिया। कार्यक्रम के आखिर में किरणपाल ने राग भैरवी पर आधारित ग्राम प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने पारंपरिक ग्रामों पर आधारित बंदिशें पेश की। किरणपाल के साथ मंच पर उस्ताद अकसर खां ने तबले पर संगत की। कार्यक्रम के अंत में केंद्र की रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर और सचिव सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया।