इन तीन गवाहों की गवाही से आकांक्ष को दिलाया न्याय
आकांक्ष सेन हत्या मामले में पुलिस ने कुल 33 गवाह बनाए थे।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : आकांक्ष सेन हत्या मामले में पुलिस ने कुल 33 गवाह बनाए थे। लेकिन इन 33 गवाहों में से तीन गवाह ऐसे भी रहे जो केस की पूरी सुनवाई में अपने बयानों पर डटे रहे। तीनों गवाह अपने बयानों से शुरू से लेकर अंत तक एक बार भी अपनी गवाही से नहीं डगमगाए। अभियोजन पक्ष का कहना है कि इन तीनों की गवाही की वजह से ही हरमेहताब को आज दोषी करार दिया जा सका है। जिन तीन गवाहों की अहम गवाही रही वह आकांक्ष का भाई अदम्य सिंह राठौड़, दोस्त कर्मयोग और राजन पपनेजा है। इसके अलावा गगनदीप शेरा और मामले की फॉरेंसिक जांच करने वाले पीजीआइ के फॉरेंसिक विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉक्टर एसपी मंडल की गवाही भी मुख्य रही। मामले में अदम्य राठौड़, कर्मयोग और राजन पपनेजा ने अभियोजन पक्ष की कहानी को स्पोर्ट तो किया ही, इसके साथ ही अपनी गवाही भी दी। अपनी गवाही में तीनों ने कहा कि वारदात को हरमेहताब और बलराज ने जब अंजाम दिया तब वह वहीं पर थे। उनकी हरमेहताब के साथ कोई पहले से दुश्मनी नहीं थी कि उसके खिलाफ झूठी गवाही दें। हरमेहताब से झगड़ा हुआ था लेकिन उस बात को काफी समय हो चुका था। लेकिन हरमेहताब उसी बात को लेकर गगनदीप से रंजिश रखे हुए था। कहा कि पहले बलराज गाड़ी में बैठा और फिर हरमेहताब। दोनों मिलकर गगनदीप शेरा की पैरवी कर रहे थे। लेकिन उस दिन उनके सामने घर से बाहर निकलकर आकांक्ष आया तो गुस्से में गाड़ी को आकांक्ष के ऊपर चढ़ा दिया। इसके बाद हरमेहताब ने ही बलराज को बोला था कि अभी वह मरा नहीं है, दोबारा से उस पर गाड़ी चढ़ाओ। इसके बाद वह ही आकांक्ष को पीजीआइ लेकर गए थे। सब साथ में थे और पार्टी कर रहे थे
वहीं, गगनदीप शेरा ने अपने बयानों में कहा था कि वारदात की रात सब साथ में थे और पार्टी कर रहे थे। पार्टी के दौरान ही उसकी बहस उनके साथ हुई थी। लेकिन वारदात के समय वह मौका-ए-वारदात पर मौजूद नहीं था, वह घर के अंदर था। वहीं, मामले की फॉरेंसिक जांच करने वाले पीजीआइ के फॉरेंसिक विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉक्टर एसपी मंडल ने अपनी रिपोर्ट और बयानों में कहा कि आकांक्ष के पेट पर गाड़ी के टायर के निशान मौजूद थे। जितने भी पेट पर चोट के निशान थे, वह कार के ही थे।