सुषमा स्वराज को पसंद था हर मोर्चे पर फ्रंट लाइन में रहना: प्रो. डीएन जौहर
लीडरशिप क्वालिटी हर मोर्चे पर आगे रहना डीबेट में भाषण देने का तरीका यह सब खूबी सुषमा स्वराज में पहले से ही थी।
वैभव शर्मा, चंडीगढ़
लीडरशिप क्वालिटी, हर मोर्चे पर आगे रहना, डीबेट में भाषण देने का तरीका, यह सब खूबी सुषमा स्वराज में पहले से ही थी। उन्हें हर मोर्चे पर फ्रंट लाइन रहना पसंद था, चाहे वह सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या फिर डिबेट और डेकलोमेशन। हर प्रतियोगिता में भाग लेना और उसे जीतना सुषमा स्वराज की आदत बन गई थी। वह सेल्फ मेड और हार्ड वर्किग थी। यह कहना है पीयू के लॉ विभाग के पूर्व प्रोफेसर और आगरा यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. डीएन जौहर का। प्रो. जौहर ने लॉ विभाग में सुषमा स्वराज को पढ़ाया है और उस समय दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था। प्रो. जौहर ने दैनिक जागरण से बात करते हुए उस समय की यादों को ताजा किया। सुषमा स्वराज के बैच के साथ ही शुरू किया था टीचिग का सफर प्रो. जौहर ने बताया कि जब उन्होंने अपना टीचिग का सफर शुरू किया था तो उसी समय पीयू के उस बैच में सुषमा स्वराज ने दाखिला लिया था। वर्ष 1970 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में प्रो. जौहर ने सुषमा स्वराज, पूर्व पंजाब सरकार के कानूनी सलाहकार हरदेव सिंह मटेवाल और हिमाचल हाई कोर्ट की पूर्व रजिस्ट्रार अर्पणा शर्मा के अलावा कई बहुचर्चित चेहरे उस समय बैच का हिस्सा थे। सुषमा स्वराज डीबेट और डेकलोमेशन में ज्यादा भाग लेती थीं। सार्वजनिक जीवन जीने की करती थीं हमेशा बात
प्रो. जौहर ने बताया कि जब वह स्टूडेंट्स से पूछते थे कि वह लॉ क्यों करना चाहते हैं तो सभी अपना-अपना तर्क देते थे। लेकिन सुषमा कहती थी कि उसने वकालत करके सार्वजनिक जीवन जीना है। देश की सेवा करनी है और उन्होंने ऐसा किया भी। उस समय लड़कियां कम ही लॉ करती थी और बैच में भी ज्यादा लड़कियां नहीं थी। सेकेंड इयर में पढ़ते हुए दोस्त के लिए किया रक्तदान
लॉ सेकेंड इयर का एक किस्सा याद करते हुए प्रो. जौहर ने सुषमा की बहुत तारीफ की। उन्होंने बताया कि उनका दोस्त अस्पताल में एडमिट था और उसे रक्त की जरूरत थी। सुषमा ने यह बात सुन ली और अपने सात दोस्तों के साथ वह अस्पताल रक्तदान करने के लिए पहुंच गई। उस छोटी उम्र में लड़की होने के बावजूद जो उनमें जज्बा था, उसे देखकर वह हैरान रह गए थे।