किसी को बस का किराया देकर मिली खुशी तो शुरू कर दी समाजसेवा
पीजीआइ के सिक्योरिटी ऑफिसर बीएस खेड़ा 18 साल से सेवाएं दे रहे हैं। वे पिछले छह साल से जरूरमंद बच्चों की सहायता के लिए काम कर रहे हैं।
[सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़] किसी की मदद करने से जो खुशी मिलती है, वह कहीं और नहीं मिलती। ऐसा मानना है पीजीआइ के सिक्योरिटी ऑफिसर बीएस खेड़ा का। खेड़ा पीजीआइ में 18 साल से सेवाएं दे रहे हैं। इस बीच पिछले 6 सालों से वे उन लोगों की सहायता में जुटे हैं, जिनके पास पैसे नहीं हैं। बिना पैसे खुद का इलाज नहीं करा सकते हैं। इन लोगों को दवाई, खाना और कपड़े देने का कार्य खेड़ा लगातार कर रहे हैं। खेड़ा ने इस समय पीजीआइ की हंसराज सराय में रहने वाले 50 बच्चों की देखभाल का भी जिम्मा उठाया है, जिन्हें वे खाना मुहैया करा रहे हैं। खाने के साथ-साथ बच्चों की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें बिस्कुट, नमकीन और फ्रूटी भी रोजाना बांटते हैं। ताकि बच्चों को किसी चीज की कमी महसूस न हो।
बच्चों के लिए सराय में लगवाए हैं झूले
बीएस खेड़ा ने बच्चों के खेलने का भी इंतजाम सराय में किया है। झूले लगवाए गए हैं। हाल में विशेष गद्दों का इंतजाम कराया है।
समाजसेवा में कामरेड विचारधारा नहीं आड़े आई
बीएस खेड़ा ने बताया कि मैं वर्ष 2000 में शहर आया था। उसके तीन साल बाद मैं एक बार ब्रह्मकुमारी आश्रम के लोगों से मिला। वहा से मैंने मेडिटेशन शुरू किया। मेडिटेशन करने के बाद मुझे सुख का अहसास हुआ, लेकिन कामरेड विचारधारा के कारण मैंने आश्रम में जाना छोड़ दिया। उसके बाद एक दिन मेरे से किसी ने बस का किराया मागा, क्योंकि उसका पर्स चोरी हो गया था। उस व्यक्ति को डेढ़ सौ रुपये दिए। वह किराया देने के बाद मुझे जो खुशी का अहसास हुआ, मैं उसे कायम रखना चाहता था। उसके बाद मैंने धीरे-धीरे बेसहारा मरीजों को फ्री में दवाई देनी शुरू की। उसके बाद कपड़े और चप्पल भी देना शुरू किया। कपड़े और चप्पलों को मैं थोक रेट पर खरीदता था, जिसके कारण कई लोग और भी मेरे साथ जुड़ गए। अब तक करीब दो सौ से ज्यादा लोगों को फ्री में दवाई दे चुका हूं। कपड़ों और चप्पलों की कोई गिनती नहीं है, क्योंकि हर सप्ताह दो से तीन सौ जोड़ी चप्पलें खरीदता हूं।
बच्चों के लिए कुछ करने का जज्बा
बीएस खेड़ा ने बताया कि पाच महीने पहले मैंने पीजीआइ में स्थित हंसराज सराय में रहने वाले बच्चों को देखा। ये ऐसे बच्चे हैं, जिनके पास इलाज के भी पैसे नहीं है और पीजीआइ इनका फ्री में इलाज कर रहा है। यह सराय कैंसर और किडनी पीड़ित 12 साल से छोटे बच्चों के रुकने के लिए बनाई गई है। वहा पर मैंने उनके खाने का जिम्मा उठाया। मेरे साथ जीसीजी-42 की एक प्रोफेसर ने सहयोग किया और वह उन बच्चों को वहा पर पढ़ाती हैं और मैं उनके लिए खाने के लिए छोटी-छोटी चीजें मुहैया कराता हूं।
परिवार रहता है कनाडा में
बीएस खेड़ा की पत्नी कनाडा में सैलून चलाती हैं। जबकि दोनों बेटिया शादी के बाद वहीं पर रह रही हैं। ऐसे में बीएस खेड़ा अकेले शहर में रहकर जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं।