77 साल की सविता ने पर्यावरण बचाने के लिए चुना अनूठा तरीका, श्मशान घाट में करती हैं यह काम
चंडीगढ़ में सेक्टर-21 में रहने वाली महिला सविता सेठी अनूठे तरीके से पर्यावरण बचाने के इस काम में साल 2005 से जुटी हुई हैं।
चंडीगढ़, [राजेश ढल्ल]। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए कई समाजसेवी अपने-अपने तरीके से काम कर रहे हैं। लेकिन श्मशान घाट में शवों के संस्कार से हो रहे प्रदूषण को दूर करने के लिए कोई विरला ही सामने आता है। जी हां, चंडीगढ़ में सेक्टर-21 में रहने वाली महिला सविता सेठी अनूठे तरीके से इस काम में साल 2005 से जुटी हुई हैं। सविता सेठी ने पर्यावरण संरक्षण न्यास नाम से एक ट्रस्ट भी बनाया हुआ है।
77 साल की आयु होने के बावजूद पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने में उनके हौसले एक युवा से भी ज्यादा बुलंद हैं। सविता सेठी का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण न्यास के नेतृत्व में उनके साथ छह पुरुष और महिलाएं हर शनिवार को सेक्टर-25 के श्मशान घाट में जाकर यहां पर जलने के लिए आने वाले हर शव के संस्कार के लिए 5 किलो हवन सामग्री और एक किलो देसी घी वायुमंडल को शुद्ध करने के लिए निशुल्क देते हैं। अभी तक 10 हजार से ज्यादा शवों के संस्कार के लिए सामग्री को देसी घी में मिक्स करके दी जा चुकी है। इसके अलावा लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा हवन सामग्री का प्रयोग करके हजारों पंफलेट बांटकर जागरूक किया जा चुका है।
शव के वजन के बराबर डालनी चाहिए सामग्री
संगठन की प्रमुख ट्रस्टी सविता सेठी का कहना है कि शास्त्रों में यह स्पष्ट है कि शव के वजन के बराबर सामग्री संस्कार के वक्त डालनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। मुश्किल से एक किलो सामग्री का प्रयोग किया जाता है। शव के संस्कार के समय कई तरह की जहरीली गैंसें निकलती हैं, जोकि पर्यावरण के लिए काफी घातक होती हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जाता है कि किसी का भी निधन के बाद जैसे-जैसे शव पुराना होता जाता है, तो उसमें से दुर्गंध आने लग जाती है। ऐसे में संस्कार के समय सुगंध वाली हवन सामग्री और देसी घी ही इनका मुकाबला कर सकते हैं।
संस्कार की सामग्री बेचने वाले भी सहयोग देने के लिए तैयार नहीं
सविता सेठी का कहना है कि असल में लोगों को जानकारी ही नहीं है कि शव के संस्कार के समय कितनी हवन सामग्री और देसी घी की जरूरत है, जो उन्हें पर्ची पकड़ा दी जाती है, वे वही ले आते हैं। शहर में ऐसी पांच से छह दुकानें हैं, जहां पर निधन के बाद लोग पूरी सामग्री खरीदने के लिए जाते हैं। संगठन की ओर से ऐसे दुकानदारों को भी जागरूक किया गया है कि लोगों को बताया जाए कि पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा सामग्री खरीदें। लेकिन वे सहयोग देने के लिए तैयार नहीं हैं।
उनका कहना है कि शहर में ऐसे हजारों संपन्न परिवार भी हैं, जोकि शव के वजन के बराबर सामग्री खरीदकर पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान दे सकते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण वह ऐसा नहीं कर पाते। जो लोग शव के वजन के बराबर सामग्री नहीं खरीद सकते, वे कम से कम 5 किलो सामग्री और दो किलो देसी घी का प्रयोग करके वायुमंडल को प्रदूषण से बचाने के लिए अपना योगदान जरूर दें।
दुर्गंध रोग पैदा करती है, जबकि सुगंध मन खुश
सविता सेठी का कहना है कि किसी से भी आने वाली दुर्गंध रोग पैदा करती है, जबकि सुगंध मन को खुश। लोग सुबह सुबह पार्कों में फूलों के बीच सैर करने के लिए जाते हैं, ताकि पूरा दिन उनका मूड ठीक रहे। इसी तरह से शव के संस्कार के समय ज्यादा से ज्यादा हवन सामग्री का प्रयोग होना चाहिए, तभी वातावरण शुद्ध रह सकता है।
शाल की जगह सामग्री और देसी घी लेकर जाएं
सविता सेठी का कहना है कि जब किसी का निधन हो जाता है, तो उसके करीबी दोस्त और परिवार के लोग शव पर शाल डालते हैं, जिसका बाद में कोई प्रयोग नहीं होता है। ऐसी शाल या तो आग के साथ जल जाती है या फिर उन्हें उतारकर श्मशान घाट में एक तरफ रख दिया जाता है। जबकि लोगों को चाहिए कि वह शाल छोड़कर एक-एक किलो देसी घी और सामग्री साथ लेकर जाएं। ऐसा करके वे पर्यावरण को बचाने में सहयोग दे सकते हैं। एक संस्कार में 10 किलो देसी घी का प्रयोग कम से कम होना चाहिए।