पंजाब में 'पानी बचाओ-पैसा कमाओ' योजना पकड़ नहीं पा रही रफ्तार, धान की MSP बनी बड़ी बाधा
पंजाब में सरकार की पानी बचाओ-पैसा कमाओ योजना गति नहीं पकड़ पा रही है। इसमें सब से बड़ी बाधा धान की फसल पर मिलने वाला एमएसपी है। किसान को फसल चक्र अपनाने के लिए जागरूक करने को तमाम अभियान के बावजूद धान की खेती नहीं छो़ड़ रहे।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। भूमिगत जल बचाने के लिए शुरू की गई पंजाब सरकार की 'पानी बचाओ, पैसा कमाओ' योजना रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि धान पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन (एमएमसपी) और उसकी खरीद सुनिश्चित होने के कारण किसान कम पानी खपत करने वाली फसल नहीं लगाना चाहते हैं। इस कारण वे इस योजना में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
धान की एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित होने से दिलचस्पी नहीं दिखा रहे किसान
तीन साल पहले शुरू की गई इस योजना के तहत कैप्टन सरकार ने ट्यूबवेल पर दी जाने वाली निश्शुल्क बिजली की सब्सिडी सीधे किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर करने का प्रविधान किया है। किसानों को एक ट्यूबवेल के आधार पर सब्सिडी के तौर पर 46,000 रुपये दिए जाते हैं। इसके बदले उन्हेंं बिजली का पूरा बिल भरना पड़ता है। अगर वह 46000 रुपये से कम बिजली खर्च करते हैं तो शेष बची राशि वह अपने पास रख सकते हैं।
योजना में निश्शुल्क बिजली की सब्सिडी किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर करने का प्रविधान
ट्रायल के तौर पर 2018 में राज्य सरकार ने इस योजना को छह फीडरों पर लांच किया था। किसानों ने उत्साह दिखाया तो अगले ही साल सरकार ने इसे 250 फीडर तक बढ़ा दिया। हर फीडर पर लगभग दो सौ के करीब ट्यूबवेल होते हैं, यानी इस समय 51200 के लगभग ट्यूबवेल इन फीडरों पर जुड़े हुए हैं। इसके बावजूद मात्र तीन हजार किसानों ने ही अभी तक इस योजना को अपनाया है।
सवाल यह है कि भूजल को बचाने और पैसा कमाने की योजना का किसान लाभ क्यों नहीं उठा रहे हैं। पावरकाम के सीनियर अधिकारी ने बताया कि ज्यादातर किसानों ने पावरकाम को बताए बिना बड़ी मोटरें लगवाई हुई हैं। जब भी वे बोर को गहरा करवाते हैं तो पानी को उसी मात्रा में लेने के लिए मोटर बड़ी रखवा लेते हैं। वे इसकी जानकारी विभाग को नहीं देते। चूंकि, यह योजना फीडर पर लगे मीटर से उनकी खपत को बता देती है। ऐसे में वे अपनी मोटरों के पास बिजली विभाग के अधिकारियों को आने ही नहीं देते। उन्हें लगता है कि उनकी मोटर बड़ी है, लेकिन खाते में छोटी लगी हुई है। ऐसे में उन्हें पैसा कम मिलेगा और खर्च ज्यादा ही होगा।
दूसरा सबसे बड़ा कारण धान पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और उसकी निश्चित खरीद का है। धान के अलावा खरीफ की किसी फसल पर न तो इतना पैसा मिलता है और न ही उसकी सुनिश्चित खरीद है। उदाहरण के तौर पर यह मान लिया जाए कि किसान धान की जगह मक्की को लगा लें और सब्सिडी का पैसा आधा बचा भी लें तो उनकी जेब में मात्र 12 से 15 हजार रुपये ही आएंगे, लेकिन मक्की को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए कोई राजी नहीं है।
केंद्र सरकार ने इसी साल मक्की का एमएसपी 1850 रुपये प्रति क्विंटल निश्चित किया, लेकिन मंडियों में यह मक्की 1100 रुपये पर बिकी। धान की एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित है। इस कारण वे धान को छोडऩा नहीं चाहते। इस कारण सीधा लाभ मिलने के बावजूद किसान इस योजना को अपना नहीं रहे हैं।
ऐसे मिलेगी समस्या से निजात
किसान अगर 'पानी बचाओ, पैसा कमाओ' योजना को अपनाकर धान छोड़कर कोई वैकल्पिक फसल लगाते हैं तो धान के लिए बंद किए जमीन के पोर्स (छिद्र) खुल जाते और बारिश का पानी जमीन में जा सकता है। इससे आगामी कुछ वर्षों में ही भूजल गिरने की समस्या से हम निजात पा सकते हैं।
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