RSS से जुड़ा राष्ट्रीय सिख संगत पंजाब में बढ़ा रहा प्रसार, लड़ सकता है SGPC चुनाव
आरएसएस से जुड़ा संगठन राष्ट्रीय सिख संगत पंजाब में अपना नेटवर्क मजबूत करने में जुटा है। राष्ट्रीय सिख संगत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी (एसजीपीसी) चुनाव लड़ सकता है। संगत पंजाब के गांवों में पैर जमाने की तैयारी में है।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी राष्ट्रीय सिख संगत पंजाब में अपना विस्तार व प्रभाव बढ़ाने की रणनीति बना रहा है। इसी के तहत वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC)के आगामी चुनाव में हिस्सा ले सकता है। इस बारे में अंतिम फैसला अगले माह होने वाली संगठन की कोर कमेटी की बैठक में होगा। राष्ट्रीय सिख संगत के मैदान में आने से SGPC के चुनाव में निश्चित तौर पर नए समीकरण बनेंगे।
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संगठन के राष्ट्रीय महासचिव रघुबीर सिंह के मुताबिक जनवरी में कोर कमेटी की बैठक में इस बारे में फैसला लिया जा सकता है। संगठन ने पंजाब के सभी गांवों में इकाइयां गठित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। उनके मुताबिक कोर कमेटी की बैठक में सहजधारियों को SGPC के चुनावों में वोट डालने के अधिकार देने के मुद्दे पर भी चर्चा होगी।
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अमृतसर में हुई संगठन की जिला स्तरीय बैठक में गत माह रघुबीर आए थे। उस बैठक में भी विभिन्न सिख संगठनों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय सिख संगत के पदाधिकारियों के समक्ष SGPC के चुनावों के लिए कोई गठबंधन तैयार करने का विचार रखा था।
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राष्ट्रीय सिख संगत की इन बढ़ती गतिविधियों का असर SGPC चुनाव में दिखाई देगा। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) व भाजपा का गठबंधन टूटने के बाद यह पहला चुनाव होगा। राष्ट्रीय सिख संगत कभी SGPC के चुनाव में नहीं उतरी है, लेकिन क्योंकि भाजपा का अकाली दल से गठजोड़ रहा है, इसलिए वह अकाली दल का ही समर्थन करती रही है।
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कई सालों से SGPC पर शिअद का वर्चस्व रहा है। इस बार परिस्थितियां बदली हुई हैैं। पंथक मोर्चे पर शिअद ढीली पड़ी है। उसमें कई तरह से फूट पड़ी है। पार्टी सत्ता से बाहर है और भाजपा के साथ गठबंधन टूट चुका है। दूसरी ओर अपने दम पर विधानसभा की सभी सीटों पर उतरने जा रही भाजपा पंजाब में अपना प्रसार बढ़ाने के लिए जोर लगा रही है।
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खासतौर पर अनुसूचित जाति वर्ग और शहरी गैर जट्ट परिवारों में आधार बनाने की कोशिश कर रही है। यह देखकर लगता है कि पार्टी SGPC के चुनाव में भी इस बार अहम भूमिका निभा सकती है। इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय सिख संगत आगे आएगा। वह जहां पहले हर गांव में अपने पांव जमाने पर काम कर रहा है, वहीं सहजधारियों को वोट का हक दिलाने को भी मुद्दा बनाने को सोच रहा है।
दरअसल, शिअद ने भाजपा नीत राजग सरकार पर दबाव बनाकर 2016 में सहजधारियों से वोटिंग का अधिकार छीन लिया था और इसके लिए बकायदा संसद में गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करवाया। उस समय शिअद भाजपा के साथ था, इसलिए पार्टी ने यह कदम उठा लिया। अब दोनों दलों की राहें अलग हैं तो इसी मुद्दे को फिर से उभारकर भाजपा सहजधारियों को अपने पक्ष में कर सकती है। यह दांव बड़ा हो सकता है।
क्या है सहजधारियों का मुद्दा
जो लोग सिखी स्वरूप में पूरे हैं, केश और दाढ़ी नहीं कटवाते, उन्हें ही गुरुद्वारा चुनाव में वोट का अधिकार है लेकिन सिख होते हुए भी जो लोग दाढ़ी, केश कटवाते हैं (सहजधारी कहलाते हैैं), उन्हें वोट के अधिकार से वंचित कर दिया गया। सहजधारी पार्टी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और वहां से उसे जीत मिल गई थी। SGPC ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां उसके पक्ष में फैसला तो हो गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एक्ट में कोई बदलाव किया जाना है तो वह संसद में पारित करवाया जाए, प्रशासनिक आदेश से इसे नहीं बदला जा सकता। 2016 में केंद्र सरकार ने सहजधारियों से वोट का अधिकार छीनने वाला बिल पारित कर गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करवाया गया।