पुराने वाहन, डीजल ऑटो पर लगे लगाम, पराली न जले तो ही हवा रहेगी साफ
प्रदूषण का खतरा पराली जलने से और ज्यादा बढ़ गया है।
बलवान करिवाल, चंडीगढ़ : प्रदूषण का खतरा पराली जलने से और ज्यादा बढ़ गया है। चंडीगढ़ में धान का रकबा न के बराबर है। लेकिन असर काफी अधिक झेलना पड़ता है। इसका कारण पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली है। इसको देखते हुए चंडीगढ़ पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी और यूटी प्रशासन के अधिकारी पंजाब और हरियाणा को पराली जलने की घटनाएं रोकने के लिए कई बार आगाह कर चुके हैं। अब देखना यह होगा कि इस पर कितना काबू पाया जाता है। हालांकि प्रदूषण के लिए केवल पराली जिम्मेदार नहीं है, वाहनों से निकलने वाला धुआं भी हवा में जहर घोल रहा है। चंडीगढ़ प्रशासन के लिए इन वाहनों पर लगाम कसना भी चुनौती बना हुआ है। बंद के बाद भी दौड़ रहे डीजल ऑटो
चंडीगढ़ में डीजल ऑटो 2015 से बैन हैं। इसके बावजूद सैकड़ों मोडिफाइड डीजल ऑटो सड़कों पर जहर उगलते दौड़ रहे हैं। स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी और ट्रैफिक पुलिस इन पर लगाम कसने में नाकाम है। इतना ही नहीं, पुरानी कार और डीजल वाहन भी खूब दौड़ रहे हैं। यह भी प्रदूषण बढ़ाने में पीछे नहीं है। चंडीगढ़ को वैसे ही कारों का शहर कहा जाता है। ऐसे में वाहनों की संख्या पर नियंत्रण नहीं होने से हर साल प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। ट्रैफिक सिग्नल कंस्ट्रक्शन साइट के पास न जाएं
ट्रैफिक सिग्नल या चौक जहां वाहन ज्यादा देर तक रुकते हैं। जिससे प्रदूषण अधिक होता है। वहां सांस संबंधी बीमारी से ग्रस्त लोग न जाएं। ट्रैफिक जाम न लगे, तो ज्यादा अच्छा होगा। इंडस्ट्रियल एरिया और कंस्ट्रक्शन साइट के पास भी ऐसी सावधानी जरूरी है। सर्दियों की शुरुआत में हर साल प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही है। नवंबर तक यह अभी और बढ़ेगा। प्रदूषण बढ़ने के कई फैक्टर हैं। इन दिनों धान का सीजन होता है, पराली जलना भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाता है। पड़ोसी राज्यों में यह घटनाएं होती हैं। स्थानीय प्रशासन इसको रोकने के लिए कदम उठा भी रहे हैं। ट्रैफिक फ्लो, इंडस्ट्री और कंस्ट्रक्शन वर्क भी हवा की गुणवत्ता पर असर डालते हैं। ट्रैफिक से पॉल्यूशन कम करने के लिए रोड बर्म पर ग्रीन बेड बनाए जा रहे हैं। पॉल्यूशन की रेगुलर मॉनीटरिग हो रही है।
-देबेंद्र दलाई, चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट चंडीगढ़ में सबसे ज्यादा प्रदूषण पुराने हो चुके वाहनों से निकलने वाले धुएं से फैलता है। प्रशासन को यह नियम बना देना चाहिए कि एक घर के लिए एक गाड़ी खरीदने की ही मंजूरी दी जाए। पिछले दिनों कोरोना के कारण जब लॉकडाउन लगा था, तब वाहनों की आवाजाही सड़कों पर बंद थी। उस समय ही लोगों को अहसास हो गया था कि प्रदूषण किस तरह से कम होता है। मौसम में भी काफी फर्क नजर आ रहा था। चंडीगढ़ के आसपास जहां पर पराली जलाई जाती है, इसका प्रभाव चंडीगढ़ में पड़ता है। ऐसे में यहां के प्रदूषण बोर्ड को भी किसानों को जागरूक करने की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
-राहुल महाजन, पर्यावरण प्रेमी
इस समय चंडीगढ़ में पराली नहीं जलती है, लेकिन आसपास के एरिया में जलने से शहर में प्रदूषण बढ़ता है, इसका सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को होता है, जिनको सांस की दिक्कत होती है। शहर के किसानों की मदद से पराली जलाने वाले लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाना चाहिए। इस समय ही शहर का प्रदूषण बढ़ना शुरू हो गया है। ऐसे में चंडीगढ़ प्रशासन को शहर में हरियाली बढ़ाने के कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही शहर में वाहनों का ऑड-ईवन सिस्टम लागू करना चाहिए।
-सुभाष चावला, पूर्व मेयर