पढ़ी-लिखी बहू ने तार-तार किए रिश्ते
आज के युवा जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम कर रहे हैं।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : परिवार लगातार टूटते जा रहे हैं। इनके टूटने के कई कारण हैं। शिक्षा और संस्कार हमेशा जोड़ने का काम करते हैं, लेकिन आज के युवा जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम कर रहे हैं। इसको दिखाने के लिए पंजाब कला भवन सेक्टर-16 में नाटक चुड़ैल का मंचन किया गया। नाटक को सिटी एंटरटेनमेंट नेटवर्क ने पेश किया। नाटक का आरंभ एक घर से होता है, जहां पर बेटा अपनी मां को गांव में फोन करके बताता है कि उसने शादी की ली है और हमें आशीर्वाद देने के लिए शहर आ जाओ। लड़के के पिता का देहांत 22 साल पहले हो चुका है। मां-बेटे के कहने अनुसार शहर में बेटे के घर आ जाती है। मां के घर आते ही बहू काम में काम करने वाली नौकरानी को हटा देती है और कहती है कि तीन लोगों के लिए खाना बनाने के लिए नौकर की जरूरत नहीं है। इसे तो मां ही कर लेगी। ग्रामीण मां बेटे के घर आकर काम करना शुरू कर देती है। वह कभी कुछ नहीं कहती। बहू पढ़ी-लिखी होने के साथ-साथ मॉडर्न भी है, जोकि सिगरेट पीना खुद की शान समझती है। रात को क्लब में जाकर पार्टी करती है। अब मां शहर आ गई है
मां के शहर आने के बाद बहू सिम्मी पति को कहती है कि मां शहर आ गई है, अब चाचा से अपने घर और जमीन का हिसाब मांगो। वह 22 साल से घर और जमीन पर रह रहे हैं और उसका फायदा ले रहे है। बेटा जब घर जाता है तो कहता है कि उसे हिसाब दो तो चाचा उसे कहता है कि घर और जमीन तो तेरी मां के नाम हो चुकी है। अब मैं कौन सा हिसाब दूं। यदि मैंने जमीन में फसल को उगाकर कुछ हासिल किया है तो उसका हिसाब में दूंगा, लेकिन उससे पहले तू अपनी मां से कह कि वह मुझसे हिसाब मांगे। मां को निकाला घर से
बेटा चाचा के पास से वापस शहर चला जाता है तो बीबी को बताता है कि चाचा ने हिसाब मां को देने के लिए कहा है। मां ने बेटे को कहा कि मैं उनसे कौन सा हिसाब मांगू। जब तेरे पिता का देहांत हुआ तो तू मात्र चार साल का था। उन्होंने तेरे को कभी बाप की कमी महसूस नहीं होने दी। तुझे पढ़ाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा दिया, अब जब तू कमाने लगा है, तो मैं कैसे उनसे हिसाब मांगू। इस पर गुस्सा होकर बहू और बेटा दोनों ही मां को घर से निकाल देते हैं और चाचा के पास रहने के लिए भेज देते हैं। नाटक को बलवंत गार्गी ने लिखा है, जबकि इसका निर्देशक बलविदर ने किया है। बलविदर ने कहा कि आधुनिक युवाओं के बीच परिवार के संबंधों का महत्व खत्म हो चुका है। वह रिश्तों से बड़ा पैसे को समझते हैं और अपने माता-पिता तक को अपने पास रखना पसंद नहीं करते हैं।