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सिद्धू के अड़ने से वाटर पॉलिसी पर नहीं बनी सहमति, अब स्टडी के लिए इजरायल जाएंगे मंत्री

कैबिनेट सब कमेटी की पहली मीटिंग में नवजोत सिंह सिद्धू के अड़ने के कारण वाटर पॉलिसी पर कोई सहमति बनती नहीं दिखी। अब मंत्री इजराइल जाकर वहां की वॉटर पॉलिसी का अध्ययन करेंगे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 01:08 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 08:50 PM (IST)
सिद्धू के अड़ने से वाटर पॉलिसी पर नहीं बनी सहमति, अब स्टडी के लिए इजरायल जाएंगे मंत्री
सिद्धू के अड़ने से वाटर पॉलिसी पर नहीं बनी सहमति, अब स्टडी के लिए इजरायल जाएंगे मंत्री

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में लगातार गिरते जा रहे भूजल स्तर को रोकने और इसमें सुधार के लिए बनाई गई वाटर पॉलिसी का भविष्य में अधर में लटक गया है। दो दिन पहले कैबिनेट सब कमेटी की पहली मीटिंग में स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के अड़ने के कारण कोई सहमति बनती नहीं दिखी। तय हुआ है कि पहले इजरायल का दौरा किया जाएगा, उसके बाद वाटर पॉलिसी के लिए बनाए गए ड्राफ्ट बिल के बिंदुओं पर बात होगी।

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सूत्रों का कहना है कि फरवरी के पहले सप्ताह में कैबिनेट सब कमेटी के इजरायल जाने की योजना है। सब कमेटी में सिद्धू के अलावा ग्रामीण विकास व पंचायत मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सिंचाई मंत्री सुखविंदर सिंह सरकारिया और जन स्वास्थ्य मंत्री रजिया सुल्ताना शामिल हैं। यह कमेटी इजरायल की वाटर पॉलिसी पर स्टडी करेगी।

सिद्धू वाटर पॉलिसी के तहत बनने वाली वाटर अथॉरिटी को लेकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अथॉरिटी के पास पानी के बिल वसूलने का अधिकार है। जिस तरह हर साल बिजली के बिल बढ़ाए जाते हैं उसी तरह पानी के बिल भी बढ़ाने का प्रावधान किया जाएगा। यह काम अभी नगर निगमों और नगर कौंसिलों के पास है। साफ है कि अथॉरिटी हमारे काम में हस्तक्षेप करेगी।

उधर, विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह कहना सही नहीं है कि वाटर अथॉरिटी किसी के काम में हस्तक्षेप करेगी। अथॉरिटी का काम पानी को मैनेज करना है। इसमें नहरी पानी, बरसाती पानी और भूजल तीनों शामिल हैं। वैसे भी स्थानीय निकाय विभाग के एक्ट में साफ है कि वह केवल पीने के पानी को लोगों को उपलब्ध करवाते हैं। वहां भी पानी सिंचाई विभाग ही नहरों या रजबाहों से भेजता है। अगर यह हस्तक्षेप है तो बिजली भी दूसरा विभाग ही लोगों को उपलब्ध करवाता है, यह लोकल बॉडीज की अपनी तो नहीं है।

शहरी वोट बैैंक के नाराज होने का डर

सरकार के एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि दरअसल समस्या यह है कि ड्राफ्ट बिल में खेती के लिए उपयोग हो रहे पानी को निकाल दिया गया है। शहर से जुड़े विधायकों और मंत्रियों को लगता है कि वाटर चार्ज बढ़ाने से शहरी वोट बैंक पर असर होगा, जबकि वास्तविकता इससे उलट है। अगर स्थानीय निकाय साफ-सुथरा पानी दे और उसके बदले में लोगों से यूजर चार्ज ले तो लोग सहर्ष इसके लिए तैयार हैं। भविष्य में जो भी हो, फिलहाल वाटर पॉलिसी राजनेताओं व अफसरशाही में फंसकर रह गई है।

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