पंजाब सरकार अब बनाएगी जल नीति, 27 के कैबिनेट बैठक में लगेगी मोहर
पंजाब सरकार राज्य की जल नीति बनाएगी। जल नीति तैयार करने के प्रस्ताव को कैप्टन अमरिंदर सिंह की अध्यक्षता में 27 जून को होनेवाली बैठक में मंजूरी दी जाएगी।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार अब राज्य के लिए जलन नीति बनाएगी। यह नीति 27 जून को कैबिनेट की बैठक में पेश की जाएगी और इस पर मोहर लग सकती है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भूजल विभाग से सभी जिलों की भूजल पर प्रेजेंटेशन मांगी है। मौसम विभाग से पहाड़ों पर पडऩे वाली बर्फ और उनके पिघलने से राज्य के डैम में आने वाले पानी की स्थिति पर भी रिपोर्ट देने को कहा गया है। 27 जून को होने वाली कैबिनेट की मीटिंग में ये दोनों एजेंडे प्रमुखता से लिए जाएंगे जिनके आधार पर राज्य की जल नीति तैयार की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने भूजल आैर राज्य के डैम में पानी की स्थिति पर जवाब मांगा
प्रदेश में घटते जल स्तर के बावजूद धान का रकबा बढऩा अलग से चिंता का विषय बना हुआ है। सिंचाई विभाग के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार राज्य सरकार ने इस साल से धान की रोपाई 20 जून से करवाकर गिरते जल स्तर को थामने का प्रयास किया है, लेकिन यह समस्या इतनी बड़ी है कि यह राज्य की प्राथमिकताओं में पहले नंबर पर होनी चाहिए। पंजाब किसान आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने भी राज्य की जल नीति जल्द से जल्द तैयार करके उस पर काम करने पर जोर दिया है।
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पता चला है कि भूजल पर विभाग के डायरेक्टर अरुणजीत सिंह मिगलानी प्रेजेंटेशन देंगे। बर्फ पिघलने से डैम में पानी की स्थिति पर रिपोर्ट देने का कार्य मौसम विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल को सौंपा गया है। इस साल पहाड़ों पर बर्फ के कम पिघलने के कारण बांधों का जलस्तर काफी गिर गया है और बीबीएमबी को पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के लिए दिए जाने वाले पानी में 15 फीसद की कटौती करनी पड़ी है।
आसान नहीं है फैसले लेना
विभाग ने जो प्रेजेंटेशन तैयार की है उसके अनुसार धान के अधीन रकबे को कम करना सबसे ऊपर है लेकिन इसके लिए जिन फैसलों को लेने की सिफारिश करने की संभावना है वह आग में हाथ जलाने के बराबर है। कहा गया है कि कम पानी उपयोग करने वाली फसलों को प्रोत्साहन किया जाए। ट्यूबवेलों को निशुल्क बिजली देने की बजाए मीटर लगाकर इसे तर्कसंगत बनाने की भी सिफारिश की जा सकती है।
अति संवेदनशील डार्क जोन ब्लॉकों में जमीन से पानी निकालने के लिए बिजली की दर वसूलने की भी सिफारिश की जा सकती है। नहरी पानी के लिए भी आबियाना वसूलने को कहा जा सकता है। इसके अलावा गांवों में छप्परों व तालाबों, जिन पर कब्जे हो चुके हैं, को फिर से अपने कब्जे में लेने की वकालत की जाएगी।
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ये फैसले लेने की भी सिफारिश
- छोटे बांधों के जरिए कृत्रिम ढंग से पानी को रिचार्ज करना।
- पुरातन व पारंपरिक पानी के संसाधनों छप्पर, तालाब व झीलों को रिवाइव करना।
-खुले खाल में पानी देकर सिंचाई सुविधा देने की बजाए माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा देना।
-नहरी सिस्टम को सुधारना और लाइनिंग करवाना।
-बरसाती पानी का ड्रेनों के जरिए निपटारा करना।
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विभाग ने दी चेतावनी
ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट की ओर से तैयार प्रेजेंटेशन में यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि ये कदम न उठाए गए तो 2025 तक 15 फीसद सिंचाई का क्षेत्र कम हो सकता है। विश्व बैंक ने भी यह चेतावनी दी है कि यदि मौजूदा ट्रेंड को बरकरार रखा गया तो बीस सालों में 60 फीसद एरिया बंजर हो जाएगा।
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यह है पंजाब के ब्लॉकों की स्थिति
-105 ब्लॉकों में जरूरत से ज्यादा पानी की निकासी।
-चार अति संवेदनशील ब्लॉक।
-3 संवेदनशील ब्लाक।
-26 सुरक्षित ब्लॉक क्योंकि इनका जमीनी पानी बहुत ज्यादा खराब है।
-28.26 एमएएफ पानी हर साल जमीन से निकाला जाता है, जबकि 18.95 एमएएफ फिर से जमीन में डाला जाता है।
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पानी दोहन में संगरूर सबसे आगे
जमीन से पानी का दोहन करने में संगरूर सबसे आगे है। उसके बाद जालंधर, मोगा, कपूरथला, बरनाला, फतेहगढ़ साहिब व लुधियाना जिलों का नंबर आता है। ये सभी जमीन में डाले गए पानी से दोगुणा का दोहन करते हैं।
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भारत सबसे ऊपर
जमीन से पानी निकालने में भारत दुनिया में सबसे आगे है। भारत के मुकाबले पाकिस्तान मात्र एक चौथाई पानी ही जमीन से निकालता है।